23 फ़रवरी 2017

दिलवर

प्रीत न की स्व-रूप से, तो क्या किया, कुच्छ भी नही ।
जान दिलवर को न दी, फ़िर क्या दिया, कुच्छ भी नही ।
मुल्क-गीरी में सिकन्दर से, हजारों मर मिटे ।
अपने पर कब्जा न किया, क्या लिया, कुच्छ भी नही ।
देवतों ने सोम-रस पिया, तो फ़िर भी क्या हुआ ?
प्रेम-रस गर न पिया, तो क्या पिया, कुच्छ भी नही ।
हिज्र में दिलवर के, हम जो उमर पाई खिजर की ।
बार अपना ना मिला, तो क्या जिया, कुच्छ भी नही ।
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मुल्क-गीरी - विश्वविजय करना । हिज्र - विरह ।
खिजर - मुसलमानों के फ़कीर का नाम, जिनकी आयु अनन्त बताते हैं ।
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इसलिये तस्वीर जानां, हमने खिचवाई नहीं ।
बात थी जो असल में, वह नक्ल में पाई नहीं ।
पहले तो यहाँ जान की, तन से शनासाई नही ।
तन से जां जब मिल गयी, तो उसमें दो ताईं नहीं ।
एक से जब दो हुये, तब लुत्फ़े-यकताई नहीं ।
हम हैं मुशताके-सखुन, और उसमें गोयाई नहीं ।
पाओं लंगङा हाथ लुंझा, आँख बीनाई नहीं ।
यार का खाका उङाना, यह भी दानाई नहीं ।
कागजी यह पैरहन है, दिल को यह भाई नही ।
दिल में डर है कि मुसव्वर, ही न बन बैठे रकीब ।
दाम माँगे था मुसव्वर, पास इक पाई नहीं ।
असल की खूबी कभी भी, नकल में आई नहीं ।
इसलिये तस्वीर जानां, हमने खिचवाई नहीं ।  
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शनासाई - पहचान । दो ताई - द्वैत, दो होना । लुत्फ़े-यकताई - एकता का आनन्द ।
गोयाई - वार्ता के इच्छुक । बीनाई - रोशनी । खाका - उपहास । दानाई - बुद्धिमत्ता ।
पैरहन - वस्त्र । मुसव्वर - तस्वीर खींचने/बनाने वाला । रकीब - शत्रु, समान प्रियतम । 

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सत्यसाहिब जी सहजसमाधि, राजयोग की प्रतिष्ठित संस्था सहज समाधि आश्रम बसेरा कालोनी, छटीकरा, वृन्दावन (उ. प्र) वाटस एप्प 82185 31326