12 जुलाई 2016

जिन्न लोक में

पहले मैंने इस घटना को अगले ही दिन प्रकाशित करने का विचार किया । परन्तु फ़िर यह उचित नहीं लगा और धीरे धीरे विचार हटता गया । लेकिन कल अचानक फ़िर लगा कि इसे बता देना चाहिये ।
वह कोई 26 जून के आसपास की रात थी । उमस भरी भयानक गर्मी जैसे अपनी चरम सीमा पर थी । मेरे बिस्तर के ठीक सिरहाने रखा कूलर भले ही पानी की नन्हीं नन्हीं बूंदों के साथ ठंडी हवा फ़ेंकने का प्रयास सा कर रहा था पर भट्टी जैसे तपते वातावरण से वह भी मानों परास्त हो रहा था । कूलर के अतिरिक्त एक टेबल फ़ैन बिस्तर के ठीक साइड में रखा था । और बिस्तर के दूसरी साइड में 4 फ़ुट ऊँची 6 फ़ुट लम्बी खिङकी पूरी तरह से खुली हुयी थी ।
खिङकी के बाहर हजार वर्ग गज से भी अधिक खुला स्थान था और अन्य मकान तथा उनकी दीवारें काफ़ी दूर ही थे । घर के आसपास का अन्य भाग भी अधिक संकुचित congested नहीं था । फ़िर भी गर्मी का यह हाल था । मानों आग की छोटी छोटी चिनगियां सी कभी कभार बरस रही हों ।
भयंकर उमस के ऐसे वातावरण में छोटे छोटे कीट पतंगे ठंडे स्थानों की ओर स्वाभाविक ही भागते हैं । सो मेरे बिस्तर पर भी कोई दस बीस कीट आराम से आ चुके थे । और कुछ मेरे वस्त्रों में घुस कर गर्मी का गुस्सा मुझ पर उतारते हुये काट रहे थे । और कई कारणों से सिवाय सहने के मेरे पास इन सब संकटों का कोई हल नहीं था । खुद को शान्त रखना अति मुश्किल हो रहा था ।
फ़िर जब बर्दाश्त के बाहर हो गया तो मैंने शीतली प्राणायाम, समाधि आदि जैसे कुछ विकल्पों पर विचार किया । परन्तु क्रियान्वित करने में असफ़ल रहा ।
इसी बीच मैंने सेलफ़ोन में एक बार समय देखा । तो 11:10 हो चुके थे । एक बार को तो मुझे लगा कि लेटने के बजाय बैठ जाना उचित है । क्योंकि बैठ कर गर्मी कम लगती है । लेकिन फ़िर मैंने इरादा टाल दिया । और जाही विधि राखे राम..जैसा सन्तोषप्रद विचार मनन करते हुये खुद को शान्त करने की कोशिश करने लगा । 
लेकिन उस वक्त तक मैं नहीं जानता था कि मेरे साथ कुछ ही देर में क्या घटने वाला है ?
11:10 के बाद शायद आधा घन्टा और हुआ होगा कि गर्मी और शरीर पर रखे हाथ के दबाव से यकायक मेरी चेतना शून्य हो गयी । अब गर्मी का कोई अहसास तक न था । और सुखद शीतलता एक आनन्द सा दे रही थी ।
तभी मेरे कन्धे और कमर पर एक अजीब सा तीवृ बल महसूस हुआ और दो दस बारह साल के मजबूत ( लेकिन उसके कुछ मिनटों बाद ही पता लगा ) बच्चों के साये का  मुझे आभास हुआ । वे मुझे उठाने के लिये बल प्रयोग कर रहे थे । पर उन्हें जैसे कठिनाई सी हो रही थी । वे जिन्न बच्चे थे । लेकिन यह बात मुझे बाद में पता लगी ।
प्रेतों और जिन्नों के साथ मेरा ये कोई नया अनुभव नहीं था । और मेरा उस वक्त उनसे व्यवहार भी सामान्य लोगों की भांति नहीं होता । सामान्य लोग ऐसे में गिगिया कर चीख पङते हैं । उनको हांफ़नी सी आती है और कभी कभी भयभीत होकर वे कहते हैं - ओ रे दईया..लिये जात है..आदि ।
पर मेरे साथ ऐसा नहीं था । मैं केवल शान्त और निष्क्रिय ही था और उनके बल का अनुभव कर रहा था ।
दोनों जिन्न बच्चे अन्दाजन कोई आठ मिनट मुझे उठाने की चेष्टा करते रहे । दस बारह की आयु समान दिखने वाले कोई ढ़ाई फ़ुट लम्बे इन बच्चों का बल किसी हष्ट पुष्ट पहलवान जैसा ही था । कभी कभी बीच में वे कोई अस्पष्ट सा शब्द बोलते ।
फ़िर जैसे खिसियाकर उन्होंने मेरे बेड की दिशा बदलते हुये उसे पूर्व ( सिरहाना ) पश्चिम से दक्षिण ( सिरहाना ) उत्तर कर दिया । और फ़िर कुछ किलकारियां सी भरी । बीच में उनकी किसी हरकत से तंग आकर मैंने उन्हें गाली भी दी ।
इसके बाद उन्होंने मेरे तकिये के ऊपरी हिस्से की रुई में आग लगा दी । रुई जलने की गन्ध के साथ ही धुंआ उठने लगा । जिन्न अक्सर ही ऐसा करते हैं । चारपाई, आदमी या अन्य वस्तुओं की उठापटक तथा कभी कभी मेज कुर्सी चारपाई आदि चीजों को तोङने लगते हैं ।
जब तकिये से धुंआ उठ रहा था । मैंने उन्हें पुनः गाली दी । फ़िर जाने क्यों उन्होंने तकिया बुझा दिया ( मुझे लगता है तकिया जलाना उनके किसी से सम्पर्क या अन्य क्रिया हेतु था । जिसका परिणाम तुरन्त हुआ )
और इसके ठीक अगले क्षण मैं यहाँ ( चित्र देखें ) जिन्न लोक में था ।
यह चित्र मैंने लगभग वैसा ही बनाया है । तथापि उतना अच्छा चित्रकार न होने से हूबहू नहीं बना सका । और कुछ भाग छूट गया । क्योंकि जो दृष्टि पटल हुआ । वह दायरा अधिक था ।
जिन्न लोक में पहुँचते ही मैं सबसे पहले उस स्थान पर गर्ल 1 के पास गया । जो बाहरी आंगन से हटकर अन्दर के आंगन में बैठी थी । मुझे ध्यान नहीं, मैंने उससे क्या कहा ।
फ़िर वह और मैं दोनों साथ साथ बाहर चारपाई के पास ( देखें डाटेड रेखा ) आ गये । वह वहाँ बैठे आदमी से कुछ बोली । 
जबकि उस वक्त मेरी निगाह सीधी बगल वाले घर में गयी । जिसमें एक किशोर वयः की नाटे कद और कुछ ही चौङी देह की लङकी जैसे गम्भीर रूप से परीक्षा की तैयारी में हाथ में किताब पकङे हुये चलती हुयी पढ़ रही थी । उसने एकाएक मेरी तरफ़ देखा । हमारी निगाहें मिली । उसकी प्रतिक्रिया उस परिचित घर में मुझ अजनबी को देखकर साधारण चौंकने जैसी ही हुयी । और वह फ़िर से किताब देखने लगी । लेकिन मैं उसे और उस घर को ही देखता रहा । उसी समय उसी घर में एक जवान महिला दरवाजे से बाहर निकल कर घर के दूसरे हिस्से की तरफ़ जाने लगी । जिधर रसोई जैसा कुछ लग रहा था । और उधर से एक जवान लङकी दरवाजे की तरफ़ जाने लगी ( ये दोनों लम्बाई आदि को लेकर औसत शरीर की थीं ) लेकिन पढ़ने वाली लङकी वहीं रही और किताब में ही ध्यान रखे थी ।
बगल वाले घर की सभी लङकियां साफ़ और गेहुंआ रंग की ही थी । लेकिन मेरे साथ वाली लङकी अधिक सांवली, दुबली और करीब पाँच फ़ुट लम्बी थी । दोनों बच्चे भी अधिक सांवले थे । लेकिन चारपाई पर बैठा अधेङ पुरुष गेहुंआ से कुछ अधिक पीला सा था और तब मजबूत देह का था ।
मैं बङे आराम से खङा हुआ वह सब देख रहा था । और वहाँ कुछ देर रुकना भी चाहता था । अतः प्रथमदृष्टया ही मेरे मन में आया कि शायद ये यक्ष लोक है । और मेरा यही विचार बनने लगा था ।
लेकिन वहाँ एक बात मुझे खटक रही थी कि सभी स्त्री वर्ग के वक्ष उभार बेहद मामूली से थे । और मेरे साथ वाली लङकी तो जैसे सपाट थी । जबकि उसकी आयु बीस से ऊपर की थी । अतः ये यक्ष लोक कदापि नहीं था ।
जब गर्ल 1 चारपाई पर बैठे उस अधेङ आदमी से बात कर रही थी । मैं बगल वाले घर की तरफ़ ही देख रहा था । इन दोनों मकानों के बीच अन्तर के लिये सिर्फ़ तीन फ़ुट उँची दीवार ही थी । और उस बगल वाले घर के आगे जो मिले हुये मकान थे । उनमें भी लगभग इतनी ही दीवार थी । मकानों की बनावट कुछ ऐसी थी कि मुझे बगल वाले मकान की तरफ़ देखने से दूर तक के मकान नजर आ रहे थे और ऊपर नीला आकाश फ़ैला हुआ था ।
बगल वाले घर की लङकी के वस्त्र सफ़ेद और कुछ गुलाबी रंग मिली डिजायन वाले थे । अधेङ कुर्ता पायजामा पहने था । बच्चे साधारण नेकर कमीज पहने थे । और मेरे साथ वाली लङकी लाल में जामुनी रंग मिले हुये वस्त्र पहने थी ।
तब फ़िर मेरी निगाह उस घर को देखने लगी । जिसमें मैं खङा था । इसी चारपाई से थोङा हटकर दो मंजिला मकान की ऊँचाई के बराबर मेरे लिये कोई अपरिचित वृक्ष खङा था । और उसी वृक्ष के साइड से मकान के किसी भाग में जाने हेतु एक रास्ता था । 
मैं सबसे पहले जिस लङकी के पास गया । उस भाग में पिछली दीवाल दो मंजिला से भी अधिक उँची थी ।
यह सब मैंने उतनी देर में आराम से देखा । जब वह अधेङ और उसके पीछे कुछ झुकी खङी गर्ल 1 पासपोर्ट साइज के कुछ रंगीन फ़ोटो देख कर कुछ मिलान सा कर रहे थे । और बच्चे आपस में कुछ बातें सी करते हुये आपस में एक दूसरे की तरफ़ देख रहे थे । इतनी ही देर में मुझे निश्चय हो गया कि यह जिन्न लोक ही है ।  
इस गर्ल 1 की मृत्यु लगभग 2011 में 48 आयु में हुयी थी । और चारपाई पर बैठा अधेङ आदमी उसका पिता था । जिसकी मृत्यु लगभग 2007-8 में 72 आयु में हुयी थी । उस समय जब वह जीवित थे । मैंने उन्हें अच्छे परिचित के तौर पर देखा था । कुछ समय का साथ जैसा भी था ।
यह व्यक्ति जो अभी मजबूत अधेङ लग रहा था । जीवित रहने पर थोङी ही शक्ति वाला वृद्ध था । और अपने ही एकमात्र पुत्र द्वारा गांव के बाहर खुले तालाब के पास कुछ दिनों की यन्त्रणा के बाद पुत्र और उसके साथियों द्वारा जमा धन प्राप्त करने के लालच में मार दिया गया था । यह अलग बात थी । वह थोङा ही पैसा उसके हाथ आया था और शेष धन उसकी इसी जीवित और एकमात्र रह गयी पुत्री को मिल गया था । क्योंकि वृद्ध की पत्नी इससे भी कुछ अधिक पहले बीमारी से चल बसी थी ।
वृद्ध का पुत्र जिसने पिता की हत्या की, लगभग 45 आयु का और बेहद शराबी था । पिता के मरने के एक डेढ़ साल बाद स्वयं उसे भी उसके साथियों ने ही उसी तालाब में डुबो कर मार दिया । लेकिन अब वह इस जिन्न परिवार में नही था । या मेरे जाने के समय नही था ।
इस तरह इस परिवार के सभी लोग अकाल मृत्यु को ही प्राप्त हुये थे । जिनमें यह लङकी और उसका पिता मृत्यु के बाद मुझे 26 जून के आसपास फ़िर मिले थे । लेकिन उन दोनों के अलावा वह बच्चे और अन्य सभी मेरे लिये अपरिचित थे ।
जीवित पर ही उस लङकी से मुझे पता चला कि उसके कुछ भाई छोटी अवस्था में ही मर गये थे । शायद वे जिन्न बच्चे उन्हीं में से हों । लेकिन उनकी मृत्यु अधिक बालपन में हुयी थी । परन्तु जैसा कि वहाँ सभी की मृत्यु समय आयु से वर्तमान आयु में, शरीर में काफ़ी फ़र्क था । वैसा ही उनके साथ भी हो सकता था । क्योंकि जिन्न बच्चे बिलकुल परिवारी बच्चों सा व्यवहार कर रहे थे ।
जिन्न लोक के सर्वप्रथम क्षणों में जब में परिचित लङकी के पास गया । उसने एक लम्बे अन्तराल के बाद मिलने की दिली खुशी सी चेहरे से प्रकट की । उसका पिता भी सामान्य प्रसन्न और मेरे लिये मेहमानबाजी की भांति व्यवहार कर रहा था । 
फ़िर उसके पिता ने हाथ में पकङे हुये फ़ोटो को देखते हुये इंकार जैसा भाव बनाया और दूसरे ही क्षण में अपने कमरे में वापिस बिस्तर पर था ।
मुझे इतनी शीघ्र वापिस होने की झुंझलाहट सी हुयी । पर मैं कुछ कर भी नहीं सकता था ।    
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तथ्य -
जिन्न भूत प्रेत आदि के बारे में अज्ञानतावश आम धारणा उनके डरावने चेहरे या अन्य रूप अजीब से शरीर आदि को लेकर होती है । जबकि ऐसी सभी सूक्ष्म योनियों के शरीर एकदम मानव शरीर जैसे ही होते हैं । केवल उनके प्रेत शरीर के अलावा बाहर से देखने में उनमें और मनुष्य में कोई अन्तर नहीं होता । लेकिन एक ताकतवर मनुष्य के तुलना में इनमें 6 गुना अधिक ताकत होती है ।
- वहाँ के मकानों का फ़र्श या तो कच्चा था । या फ़िर उसमें लगी चीजें बिलकुल मिट्टी के समान रंग की थी । लेकिन फ़र्श एकदम संगमरमरी फ़र्श जैसा सख्त और चिकना था । बगल वाले मकान की दरवाजे वाली दीवाल जैसे सीमेंट और ईंटों से बनी थी । लेकिन उस पर प्लास्टर नहीं था । जबकि कुछ अन्य दीवालें प्लास्टर जैसी थीं । ईंट की मोटाई भी करीब 6 इंच थी और लम्बाई लगभग 10 इंच की ।
- मुझे थोङी हैरानी उस जिन्न के हाथ में पकङे फ़ोटोज को लेकर थी । रंगीन नये और पासपोर्ट साइज के फ़ोटो । लेकिन फ़िर हैरानी नहीं भी थी ।
- उन दोनों मकानों में किसी भी प्रकार का कोई सामान या वस्तु आदि कुछ भी नहीं था । और सफ़ाई इतनी थी कि एक तिनका भी नजर न आये ।
इसका कारण शायद यही था । अच्छी स्थिति वाले जिन्न आवश्यक वस्तु, भोजन आदि जो उन्हें चाहिये । उसी रूप में उपलब्ध कर सकते हैं । इसी कारण मुझे आधुनिक फ़ोटो देखकर हैरानी नहीं हुयी थी ।
ऐसे अधिकांश लोकों में वर्षा, धूप, धूल, आंधी तूफ़ान जैसा कुछ नहीं होता । अतः सफ़ाई स्वयं ही रहती है । मौसम लगभग प्रातः 5 बजे जैसा होता है । और उतना ही उजाला होता है । सर्दी गर्मी आदि नहीं होते । 
महत्वपूर्ण - जिन्न बच्चों ने जो मुझे दक्षिण दिशा में सिर और उत्तर की ओर पैर किये थे । ये उनका मुझे ले जाने के लिये तरीका था । यदि ऐसा नहीं करते तो नहीं ले जा पाते । सूक्ष्म शरीरों का कोई चुम्बकत्व गुण नियम यहाँ लागू होता है ।
हवा में उठाकर जो तकिया जलाया । वह भी ले जाने से सम्बन्धित ही यात्रा उपकरण का कार्य करता था । उनके लिये ऐसा करना भी आवश्यक था ।
- हाँ बगल वाले मकान की जो लङकी पढ़ाई कर रही थी । वह मेरे लिये आश्चर्य था । शायद स्थायी जिन्नता में ऐसा कुछ होता हो । क्योंकि जीवन के ढर्रे में सभी जगह प्रथ्वी से बहुत चीजें मिलती हैं । उस मकान की जिन्न स्त्रियां भी साधारण ग्रहणियों की भांति थी । और बगल वाले घर में क्या हो रहा है । इसके प्रति लगभग उदासीन थी । शायद ऐसा होना उनके जीवन का हिस्सा रहा हो । 
- अब तक शुद्ध रूप से जिन्न प्रेत सम्बन्धित ये मेरा लगभग दसवां लोक था । जिसमें कारणों से मेरी यात्रा हुयी थी । 
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जानकारी के तौर पर बहुत कुछ लिखा जा सकता है । पर अभी इतना ही ।

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