22 सितंबर 2013

क्यों बे ! वैसे तो तू हनुमान की औलाद है

यदि आपको ऐसे ही अनोखे प्रश्नों पर उत्तर और जिज्ञासाओं तथा राजीव बाबा की अटपटी चटपटी बातों को जानना है । तो फ़िर नीचे दिये गये समूह से आपको जुङना ही होगा । 
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अगर हिन्दू धर्म शास्त्रों के कुछ विवरणों पर विश्वास किया जाये । तो किसी भी सच्चे सन्त द्वारा वृक्ष नदी या पहाङ ( या दूसरे भाव में अपवाद असुर भी ) जैसी जङ और जटिल योनियों को प्राप्त हुये जीवात्मा को किसी पूर्व जन्म के पुण्य फ़लस्वरूप यदि किसी सच्चे सन्त से उसी जङ योनि में संयोग हो । और वह सन्त उस वृक्ष ( योनि को प्राप्त हुये जीवात्मा ) के नीचे विश्राम करे । या उसका फ़ल खाये तो । इसी तरह नदी का भी कोई उपयोग करे तो । और पहाङ आदि पर रहे तो । अथवा समाधि आदि का अभ्यास करे । तो उसे सन्त के आशीर्वाद स्वरूप कुछ समय बाद ही या अगला मनुष्य जन्म भी प्राप्त हो जाता है । आपके विचार से क्या यह सत्य है ?
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एक अजीव सी कथा मैंने सुनी है । वह सत्य है । अथवा नहीं । मैं नहीं कह सकता । पर बहु प्रचलित है । तुलसीदास की पत्नी का नाम रत्नाबाई था । कहते हैं । वह एक विदुषी और धार्मिक महिला थीं । लेकिन इसके बजाय तुलसीदास सन्त बनने से पूर्व बेहद कामी प्रवृति के कहे गये हैं । तब एक बार जब उनकी पत्नी कुछ समय के लिये अपने मायके को गयीं । तो तुलसीदास जी 

काम पीङित अन्दाज में उनके पीछे पीछे ही अपनी ससुराल जा पहुँचें । लेकिन उससे पहले जब वह ससुराल जाने हेतु अपने घर से निकले । तो रात का अंधेरा फ़ैलने लगा था । और रास्ते में एक नदी पङती थी । घटना के अनुसार नदी चढी हुयी थी । और तुलसीदास ने रात के अंधेरे में ही बहकर आते मुर्दे ( को नाव समझकर उसके ) द्वारा वह नदी पार की । फ़िर जब वह ससुराल के द्वार पर पहुँचें । तो द्वार बन्द हो चुका था । और दरबाजे के ठीक ऊपर एक लम्बा सर्प लटक रहा था । ऐसा कहा जाता है । कामान्ध तुलसीदास ने समझा कि ये उनकी पत्नी ने उनके लिये रस्सी लटकायी है । जो भी हो । तुलसीदास उसी सर्प द्वारा छत के माध्यम से अपनी पत्नी के पास पहुँचें । रत्ना उन्हें देखकर भौंचक्का रह गयी । और जब उसे तुलसीदास की कामपिपासा के बारे में पता चला । तो उसने लगभग उन्हें फ़टकारते हुये कहा - इस हाङ मांस के शरीर से तुम्हें इतना लगाव है । यदि इतना लगाव तुम्हें भगवान से होता । तो तुम्हारा कल्याण ही हो जाता । कहते हैं । इसी फ़टकार ने तुलसीदास का जीवन बदल दिया । लेकिन मेरा इशारा सिर्फ़ मुर्दे द्वारा नदी पार करना । और छत से लटकते सर्प द्वारा छत पर जाने की तरफ़ है । आपके विचार में क्या यह संभव है ?
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आपने सुना होगा कि शेर जंगल का राजा होता है । लेकिन अभी के शोधित नवीनतम वैज्ञानिक तथ्य बताते हैं कि शेर बेहद सुस्त और आलसी होता है । तथा वह अधिक दौङ भी नहीं सकता । इसलिये अपने बच्चों और स्वयं 

के पालन पोषण हेतु शिकार शेरनियां ही करती हैं । लेकिन मुझे इन तथ्यों से अधिक मतलब नहीं है । आध्यात्म विज्ञानी सन्तों के अनुसार शार्दूल नाम का एक सेही चूहे जैसा जंगली जन्तु होता है । मुझे इसका अभी का वैज्ञानिक नाम ज्ञात नहीं है । पर हुलिया के आधार पर शायद आप इसे जान सकें । इसमें और सेही ( या साही ) चूहे में इतना फ़र्क होता है कि इसके मुँह पर करीब करीब 6 इंच के लगभग लम्बी थूथन या सूँङ जैसी होती है । जो किसी तेज नुकीले हथियार के समान ही होती है । कहते हैं । ये शेर का शिकार करता है । यानी ये शेर का खून पीता है । इसके लिये यह किसी चट्टान या झाङी या छोटे वृक्ष आदि से शेर की गर्दन पर जा गिरता है । और अपनी यही सूँङ उसकी गर्दन में गङा कर शेर का खून पीते हुये उसे निष्प्राण कर देता है । कहा जाता है । शेर इससे इतना भयभीत रहता है कि इसे देखते ही इससे बहुत दूर भागता है । ये शार्दूल नाम का जन्तु मैंने तो देखा है । पर आप इसे हुलिया के आधार पर

इंटरनेट पर सर्च कर सकते हैं । क्या आप इस जानकारी से सहमत है ?
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कोई भी धार्मिक कट्टरता हमारे अंतर्मन में कितनी गहरी पैठ लिये होती है । इसका आँखों देखा उदाहरण आपको बताता हूँ । यह आगरा की ही बात है । एक मुस्लिम महिला ने कई रोटियां बनाकर अपने कटोरदान में ऊपर ही खुली रखी थीं । एक बन्दर उसकी दीवाल पर चुपके से यह सब नजारा देख रहा था । तब जैसे ही उसे मौका मिला । वह कुछ अधिक रोटियां लेकर ऊपर भागकर चढ गया । मुस्लिम महिला यह आकस्मिक नुकसान देखकर बेहद बौखला गयी । और अक्षरशः यह 

शब्द बोली - क्यों रे ! वैसे तो तू हनुमान की औलाद बनता है । और रोटी मुसलमान की खाता है । आपको इस बात में क्या नजर आता है । उस महिला की बौखलाहट । या धार्मिक अलगाव वाद की भावना । या आकस्मिक हुये नुकसान की खीज ?
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मेरे एक दुष्ट शिष्य का कहना है कि - मैं किसी भी व्यक्ति के कपङे तक उतार लेता हूँ । दरअसल इसका भाव यह है कि मेरे द्वारा उसकी सभी पूर्व धारणाओं के आंतरिक बाह्य आवरण स्वतः ही उतर जाते हैं । और वह व्यक्ति किसी विषय विशेष पर निजी भावनाओं से पूर्णतया रिक्त हो जाता है । मेरी सिखाई योग क्रियाओं से वह नितांत शून्य 0 का अनुभव करने लगता है । क्या आपको ये बात सत्य लगती है ?
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किसी किसी को आश्चर्य होता होगा कि मैं आत्मा परमात्मा या परमानन्द के शोध के बजाय कहाँ इन पशु पक्षियों की बातों में उलझ गया । लेकिन वास्तव में ऐसा नहीं है । दरअसल आत्मा परमात्मा तक पहुँचने से पहले प्रकृति या सृष्टि के रहस्य उसी मार्ग में आते हैं । और दरअसल ये रहस्य ही हमें उस अदभुत असीम अनन्त अविनाशी सत्ता के बारे में सोचने पर मजबूर करते हैं । जिसके अनन्त प्रकाश की हम एक किरण मात्र हैं । तब आईये । आज आपको कुछ और रहस्यों से अवगत कराऊँ । आपने TV में या साक्षात बहुत से पशु पक्षियों को मैथुन करते प्रायः देखा होगा । लेकिन किसी ने भी आज तक काग यानी कौआ को मैथुन करते हुये कभी कहीं नहीं देखा होगा । इसी तरह आपने मयूर यानी मोर को भी नहीं देखा होगा । काग के बारे में तो अभी मैं स्वयं अनिश्चित हूँ । पर मयूर का रहस्य निश्चय ही मुझे पता है । क्योंकि हमारे चिन्ताहरण आश्रम पर इनकी बहुतायत है । अतः मैं इसका साक्षी भी हूँ । वास्तव में मोर कभी संभोग नहीं करता । बल्कि नाचने के उपरांत इसकी आँख से आँसू या आँसू समान दृव्य आता है । मोरनी उसी को पी लेती है । और उसका गर्भ धारण

हो जाता है । ये सुन्दर पंख सिर्फ़ मोर के ही होते हैं । मोरनी प्रायः बेहद हल्के कत्थई रंग की और तुलनात्मक मोर लगभग बदसूरत ही होती है । सृष्टि के रहस्यों में से मोर उन अदभुत जीवों में से है । जिसमें मादा बेहद अनाकर्षक और नर बेहद सुन्दर होता है । क्या आपको ये सच लगता है ?
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भक्त प्रहलाद की तपस्या और उसके असुर पिता हिरणाकश्यप द्वारा उसको प्रताङित करने के बारे में आप सब प्रायः जानते ही होंगे । आत्मज्ञान के आंतरिक जानकार सन्तों के अनुसार अब से कुछ ही माह पूर्व प्रहलाद अपने तप के फ़लस्वरूप स्वर्ग में इन्द्र पद पर था । और अब पुण्य भोगफ़ल काल पूरा होने के बाद उसे फ़िर से

नीचे गिरा दिया गया । इस समय इन्द्र की पदवी पर एक दूसरा प्रसिद्ध तपस्वी ध्रुव नियुक्त है । लेकिन मेरा विषय यह नहीं है । तपस्या के दौरान हिरणाकश्यप ने प्रहलाद को अनेकों कष्ट दिये । पर वह विचलित नहीं हुआ । लेकिन अन्त में जब उसको पूर्णरूपेण मारने हेतु एक खम्बे को बिलकुल तप्त लाल दहकता हुआ कर दिया गया । और हिरणाकश्यप ने प्रहलाद को उससे बाँधने से पूर्व अन्तिम बार निर्णयात्मक अन्दाज में पूछा - क्या तेरा भगवान इसके अन्दर भी है ? ज्ञानी कहते हैं । इस समय प्रहलाद बेहद विचलित हो गया । और हार मानकर हिरणाकश्यप के सामने समर्पण करने ही वाला था कि तभी प्रभु प्रेरणा से उसे खम्बे पर चलती हुयी चीटीं दिखायी दी । प्रभु का यह संकेत मानों काफ़ी था । क्योंकि छूते ही भस्म कर देने की क्षमता वाले तप्त खम्बे पर चीटीं आराम से जीवित ही रेंग रही थी । तब अचानक प्रहलाद का खोया हुआ आत्मविश्वास लौट आया । और उसने दृणता से कहा - हाँ ! इस खम्बे में भी भगवान है । आगे की बात आप जानते ही हैं ।
पर आज बहुत से सिर्फ़ विज्ञानी सोच केन्द्रित व्यक्ति इसका उपहास सा करते हुये मानने से इंकार कर देंगे । और

उनको इस भूतकालिक घटना का कोई प्रमाण दिया भी नहीं जा सकता । लेकिन अभी अभी वैज्ञानिकों ने ही खौलते हुये ज्वालामुखी लावे या अन्य प्रकार के लावों में जीवित सूक्ष्म जीवाणुओं को बङी संख्या में देखा है ।
पर छोङिये । इसका भी आम आदमी को कोई साक्षात प्रमाण तो नहीं है । लेकिन एक प्रमाण मेरे पास है । बङा गूलर बिलकुल बन्द होता है । लेकिन यदि आप उसको तोङेंगे । तो उसमें कई आँखों से ही आराम से नजर आने वाले सैकङों छोटे जीव नजर आयेंगे । दूसरे प्रमाण के रूप में बङा वाला लभेङा या लिसौङा आप तोङिये । तो उस प्रत्येक फ़ल में बिलकुल एक बङे घुन के समान उतना ही बङा जीव मिलेगा । प्रश्न ये है । लगभग सील बन्द जैसे फ़ल में ये जीव किस कारीगरी से अन्दर पहुँच जाते हैं ? और किसी सृष्टि की भांति ही रहते हैं । हैं ना ये सृष्टि के अदभुत रहस्य । क्या आप सहमत हैं ?
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कबीर के जन्म के सम्बन्ध के बारे में आपने अनेक अजीब से किस्से कहानियाँ पढे सुने होंगे । पर आज मैं आपको सच्चाई बताता हूँ । भले ही आप मानना । या न मानना । कबीर का जन्म एक कुंवारी पवित्र युवा लङकी से हुआ था । ये कबीर के ही काल की बात है । एक युवा लङकी किसी कार्यवश हिमालय पर गयी । वहाँ एक तपस्वी संभवतः बहुत ही दीर्घकाल से तपस्यारत थे । जिस समय ये लङकी उनके पास पहुँचीं । ये बहुत लम्बे समय से ही ध्यानस्थ स्थिति में थे । और खुले बदन अत्यधिक शीत के कारण चेतना शून्य होने की स्थिति में 

पहुँच गये थे । सरल शब्दों में इनका शरीर खत्म होने वाला था । तब शायद किसी दैवीय प्रेरणावश उस लङकी ने इनके बदन को गर्मी देने के यथासंभव कई उपाय किये । पर योगी की चेतना नहीं लौटी । आखिरकार लङकी ने वही उपाय किया । जो अन्तिम था । उसने प्रयास से ध्यानस्थ योगी की कामाग्नि को जगाया । और लगभग अचेत योगी से संभोग किया । इसी संयोग के फ़लस्वरूप कबीर का जन्म हुआ था । आप शायद ही इस पर विश्वास कर पायें । लेकिन यदि आप किसी भी दिव्य अलौकिक विभूतियों के जन्म का खोजी अध्ययन करें । तो अधिंकाश अविवाहित संयोगों से, कुंवारी लङकियों से, या फ़िर किसी तपस्वी पुरुष के माध्यम से ही उत्पन्न हुये होंगे । जिसमें ईसामसीह, हनुमान, दशरथ के चारों पुत्र, धृतराष्ट्र, पाण्डु, विदुर आदि नाम प्रसिद्ध हैं । इसके पीछे का अलौकिक वैज्ञानिक कारण दरअसल ये होता है कि कोई भी दिव्य विभूति साधारण व्यक्ति के वीर्य से । या रज से । और साधारण अस्तित्व से उत्पन्न ही नहीं हो सकती । एक दिव्य शरीर के निर्माण हेतु दिव्य वीर्य की ही आवश्यकता होती है । जहाँ तक ऐसे दिव्य शिशुओं की कुंवारी माँओं का प्रश्न है । मैंने अक्सर आपको बताया है । 84 लाख योनियों में 4 लाख प्रकार के तो मनुष्य ही होते हैं । और इनमें भी 10-15% मनुष्य शरीर सामान्य मनुष्य शरीर न होकर दिखावटी ही होते हैं । ये वे लोग हैं । जो किसी शापवश या किसी अन्य दैवीय कारणवश या द्वैत अद्वैत सत्ता के आदेश वश एक निर्धारित अवधि के लिये मनुष्य शरीर धारण करते हैं । और फ़िर कार्य पूरा होने पर किसी सामान्य से लगने वाले रहस्यमय अन्दाज में या अचानक ही कपङे के समान वह शरीर त्याग कर गायब हो जाते हैं । आपको आश्चर्य होगा । बहुत सी अप्सरायें । छोटी देवियां । देवता अन्य दिव्य आत्मायें यहाँ होती हैं । लेकिन ये शरीर धारण करने के बाद मायावश वे अपनी स्थिति को भूल जाते हैं । और जैसे ही कार्य पूरा हो जाता है । उन्हें अपनी पहचान याद हो आती है । अतः इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं कि ऐसी रहस्यमय सन्तानों को लेकर किसी भी प्रकार का सामाजिक विवाद नहीं होता । क्योंकि इनकी देखरेख आदि की पूरी जिम्मेदारी प्रकृति और माया की होती है । अतः वह उस पर रहस्य आदि का परदा डालकर वैसी स्थितियां निर्मित कर देती है । और अलौकिक शिशु सामाजिक हो जाता है । क्या आप इससे सहमत हैं ?
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