21 सितंबर 2013

ॐ कार का वास्तविक रहस्य

आज बहुत से सन्तों ने बहुत से पंथों ने बहुत से आस्तिकों ने और बहुत से पुजारियों ने ॐ कार को ही सबसे बङा मन्त्र, परमात्मा या परमात्मा का वास्तविक नाम, शब्द, आदि जाने क्या क्या मान लिया है ? ओशो ने भी इसकी बहुत माला सी जपते हुये गुणगान किया है । तमाम ओशोवादी भी उसी तर्ज पर ॐ कार ॐ कार का कीर्तन करते रहते हैं । स्वयं गुरुनानक ने भी " एक ॐ कार सतनाम " जैसी बात कही है । पर वास्तव में ज्ञान के तल पर ये बात एकदम अज्ञानता पूर्ण और अवैज्ञानिक ही है । क्योंकि ॐ कार सिर्फ़ मनुष्य शरीर का सबसे प्रमुख बीज मन्त्र है । इस बात पर गौर किया आपने - सिर्फ़ बीज मन्त्र । तब बीज और मन्त्र का मतलब क्या है । ये बताना आवश्यक नहीं है । क्योंकि बीज से ही तो ( जीवन ) वृक्ष की उत्पत्ति होती है ।
इस ॐ बीज मन्त्र में 5 अंग हैं । अ, उ, म, अर्धचन्द्र और बिन्दु । ये अ उ म तीन गुणों यानी सत रज तम का प्रतिनिधित्व करते हैं । प्रतीकात्मक स्थूल ज्ञान में ये बृह्मा विष्णु शंकर की तरंगे ही हैं । जो तीन गुण आधारित जीवन को क्रियाशील करती हैं । 
बृह्मा विष्णु सदा शिव जानत अविवेका ।
प्रणवाक्षर ( ॐ ) के मध्ये ये तीनों एका ।
इसमें अर्ध चन्द्र इच्छाशक्ति का प्रतिनिधित्व करता है । जो प्रतीकात्मक या स्थूल ज्ञान में माया या देवी शक्ति आदि कहा जाता है । और शेष बचा बिन्दु इसमें शब्द, अक्षर या ररंकार का प्रतिनिधित्व करता है । जिसे प्रतीकात्मक या स्थूल ज्ञान में राम, खुदा ( अल्लाह नहीं )

god आदि कहते हैं । ये बिन्दु कंपन में बनने वाले बिन्दु पर ही आधारित अक्षर प्रतीक है । क्योंकि आप किसी भी नाद से उत्पन्न ध्वनि तरंगों का जब ग्राफ़ बनायेगें । तो वह सूक्ष्म स्थिति में बिन्दुवत ही होगा । एक राम घट घट में पैठा । इसी बिन्दु के लिये ही कहा जाता है । क्योंकि शरीर की समस्त चेतना स्थिति इसी बिन्दु से ही बन रही है । अब आप आसानी से समझ सकते हैं । जिस प्रकार की ये जीव सृष्टि है । उसमें इन 5 के संयुक्त हुये बिना जीव जीवन या सृष्टि संभव नही है । तब समझ में नहीं आता । ओशो गुरुनानक या अन्य लोग इसी ॐ कार पर ही क्यों अटक कर रह गये । जबकि ये महा मन्त्र भी नहीं है । परमात्मा का शब्द आदि होना तो बहुत दूर की बात है ।
अब ये समझिये । ये सबसे प्रमुख बीज मन्त्र क्यों है ? दरअसल इसी ॐ कार ( कार मतलब कर्ता ) से सभी मनुष्यों के ? शरीर की रचना हुयी है ।
ओहम ( ॐ ) से काया बनी सोहम से मन होय । 
ओहम सोहम ( सोहं ) से परे जाने बिरला कोय ।
ॐ कार से शरीर की रचना किस तरह से हुयी ? ये उपरोक्त के आधार पर समझना बहुत कठिन भी नहीं है । ॐ कार में बिन्दु चेतना । अर्ध चन्द्र इच्छाशक्ति । और अ उ म तीन गुण यानी सत रज तम हैं । और किसी भी मनुष्य शरीर का मुख्यतयाः इन्हीं 5 से काम होता है । इसीलिये किसी भी मन्त्र आदि का संधान करते समय इसी ॐ यानी चेतना इच्छाशक्ति और तीनों गुणों को एकाकार करके जीव स्तर पर स्व उत्थान हेतु किसी दैवीय शक्ति या ज्ञान का संधान किया जाता है । और जब शरीर ही नहीं होगा । तब आप किसी अन्य देवी देवता मन्त्र आदि का संधान अनुसंधान किस प्रकार करेंगे । जाहिर है । जीव स्तर पर किसी भी क्रिया के लिये शरीर बेहद आवश्यक है ।

इसी आधार पर आध्यात्म विज्ञानियों ने प्रत्येक मन्त्र के आगे आवश्यकतानुसार ॐ कार को जोङ दिया है । जैसे - ॐ नमो भगवते वासुदेवाय । ॐ नम शिवाय, ॐ भूर्भुव स्व.. आदि आदि । अर्थात मैं इस शरीर द्वारा समग्र रूप से किसी लक्ष्य विशेष की तरफ़ क्रियाशील होता हूँ । ॐ के आगे लिखा भाव वाची शब्द या वाक्य उस संधान या लक्ष्य का द्योतक है ।
अब मान लीजिये । ये तो तत्व ज्ञान की बात है कि कोई इसके सभी अंगों और अर्थ विशेष को जानता है । तब वह अपनी साधना संधान में वह भाव नहीं लायेगा । जो ना जानकार का होता है । पर फ़िर भी आप अपने उस गुरु के आधार पर भी जो ॐ कार के इस रहस्य से अनभिज्ञ है । ॐ कार का गहरा जाप करते हैं । तो इसमें स्थित धातुयें तथा प्रथम तीन गुण ( सयुंक्त होकर एकाकार हुये ) फ़िर इच्छाशक्ति ( और गुण सयुंक्त हुये ) फ़िर चेतना ( से इच्छाशक्ति और गुण संयुक्त होकर जुङ गये ) और फ़िर ये पाँचों संयुक्त होकर उस लक्ष्य विशेष का संधान करने लगे । जिसके लिये आपका भाव था । तो मेरे कहने का मतलब । यदि आप सही लय में निरन्तर ॐ ॐ ऐसा जाप करते हैं । तो आप शरीर को प्रमुख घटकों के साथ एकाकार करने के अभ्यासी हो जाते हैं बस । और ॐ ॐ का जाप इसी एक लय चेतना को जानने लगता है । अब मान लीजिये । आपने इसके आगे श्रीकृष्ण भक्ति के लिये मन्त्र नमो भगवते वासुदेवाय का चयन किया है । तो इसका अर्थ यह होगा । मैं अपनी सम्पूर्ण चेतना गुण और इच्छाशक्ति के साथ भगवान वासुदेव का संधान करता हूँ । 
अब यहाँ भी 2 बातें हो जाती हैं । यदि आप श्रीकृष्ण को उसी लीला शरीर यानी स्थूल रूप से ही जानते हैं । और तत्व रूप से श्रीकृष्ण के आकर्षण या कर्षण रहस्य को नहीं जानते । तव आपका ॐ नमो भगवते वासुदेवाय उतना प्रभावी नहीं होगा । लेकिन यदि आप श्रीकृष्ण को तत्व से जानते हैं । तो ये ही मन्त्र हजार गुणा प्रभावी हो जायेगा । इसीलिये श्रीकृष्ण ने गीता में कहा है - जो मुझे तत्व से जानता है ।
और ये ठीक उसी तरह से है । जिस प्रकार आप स्थूल रूप से अपने कम्प्यूटर को सिर्फ़ साफ़्टवेयर एप्लीकेशन ( बाह्य रूप ) के रूप में प्रयोग करना जानते हैं । फ़िर आप उसे हार्डवेयर ( आतंरिक ) के रूप में भी जानते हैं । और फ़िर आप उसके मूल सिद्धांत c++ ( सूक्ष्म ) आदि जैसे भाषा रूप में भी जानते हैं ।
अतः ॐ सिर्फ़ बीज मन्त्र है । कोई परमात्मा का नाम या महा मन्त्र आदि भी नहीं है । ॐ से कहीं बहुत बङा सोहं है । जिसको महा मन्त्र कहा जाता है ।
आईये आपको एक और मजेदार स्थिति के रहस्य की बात बताऊँ । यदि आपसे प्रश्न किया जाये कि शरीर और मन में से किसकी रचना पहले हुयी । तो निसंदेह ना जानकारी के कारण आप शरीर की पहले बतायेंगे । क्योंकि आपके अनुसार शरीर में ही मन होता है । जब शरीर ही नहीं होगा । तो मन कहाँ से आयेगा ?
पर दरअसल ये एकदम विपरीत ही है । किसी भी शरीर से पहले उसके मन ( सोहं ) की रचना हो जाती है ।
इच्छा काया इच्छा माया इच्छा जगत बनाया ।
इच्छा पार हैं जो विचरत उनका पार न पाया ।
क्योंकि मन ( अंतःकरण  ) में जो कुछ अच्छा बुरा लिखा है । उसी अनुसार शरीर भाग्य परिवार आदि सभी सम्बन्धों का जीवन में प्रकटीकरण होगा ।
ॐ कार त्रिकुटी के भूपा । जा ते परे निरंजन रूपा । 
चलिये ये थोङा गूढ और बेहद सूक्ष्म आंतरिक विषय है । अतः आपके चिन्तन हेतु थोङे पर ही विराम देता हूँ । साहेब ।
आप सभी के अंतर में विराजमान सर्वात्मा प्रभु आत्मदेव को मेरा सादर प्रणाम । 

6 टिप्‍पणियां:

Unknown ने कहा…

जय हो

विचित्र ने कहा…

i want complete knowledge , if u kindly provide me

Unknown ने कहा…

Om tat sat

Unknown ने कहा…

Wrong

Unknown ने कहा…

galat

Unknown ने कहा…

om se kaya kaise bani om akshar hai aur akshar malin hua tab ahankar hua aur ahankar to man hai

मेरे बारे में

मेरी फ़ोटो
सत्यसाहिब जी सहजसमाधि, राजयोग की प्रतिष्ठित संस्था सहज समाधि आश्रम बसेरा कालोनी, छटीकरा, वृन्दावन (उ. प्र) वाटस एप्प 82185 31326