15 सितंबर 2013

मरो है जोगी मरो

मरो है जोगी मरो - गोरख नाथ । न जाने समझोगे या नहीं ? मृत्‍यु बन सकती है द्वार अमृत का । हंसिबा खेलिबा धरिबा ध्‍यानं । 
बसती न सुन्यं सुन्यं न बसती अगम अगोचर ऐसा ।
गगन सिषर महिं बालक बोले ताका नांव धरहुगे कैसा ।
हसिबा खेलिबा धरिबा ध्यानं । अहनिसि कथिबा ब्रह्मगियानं ।
हंसै षेलै न करै मन भंग । ते निहचल सदा नाथ के संग ।
अहनिसि मन लै उनमन रहै । गम की छाडि अग की कहै ।
छाडै आसा रहे निरास । कहै ब्रह्मा हूं ताका दास ।
अरधै जाता उरधै धरै । काम दग्ध जे जोगी करै ।
तजै अल्यंगन काटै माया । ताका बिसनु पषालै पाया ।
मरी वे जोगी मरी । मरी मरन है मीठा ।
तिस मरणी मरौ । जिस मरणी गोरष मरि दीठा ।
महाकवि सुमित्रानंदन पंत ने मुझसे 1 बार पूछा - भारत के धर्माकाश में वे कौन 12 लोग हैं मेरी दृष्टि में । जो सबसे चमकते हुए सितारे हैं ? मैंने उन्हें यह सूची दी - कृष्ण, पतंजलि, बुद्ध, महावीर, नागार्जुन, शंकर, गोरख, कबीर, नानक, मीरा, रामकृष्ण, कृष्णमूर्ति ।
सुमित्रानंदन पंत ने आंखें बंद कर लीं । सोच में पड़ गये ।  सूची बनानी आसान भी नहीं है । क्योंकि भारत का आकाश बड़े नक्षत्रों से भरा है । किसे छोड़ो । किसे गिनो ? वे प्यारे व्यक्ति थे । अति कोमल । अति माधुर्य पूर्ण । स्त्रैण । वृद्धावस्था तक भी उनके चेहरे पर वैसी ही ताजगी बनी रही । जैसी बनी रहनी चाहिए । वे सुंदर से सुंदरतर होते गये थे । मैं उनके चेहरे पर आते जाते भाव पढ़ने लगा । उन्हें अड़चन भी हुई थी । कुछ नाम, जो स्वभावत: होने चाहिए थे । नहीं थे । राम का नाम नहीं था । उन्होंने आंख खोली । और मुझसे कहा - राम का नाम छोड़ दिया है आपने । मैंने कहा - मुझे 12 की ही सुविधा हो चुनने की । तो बहुत नाम छोड़ने पड़े । फिर मैंने 12 नाम ऐसे चुने हैं । जिनकी कुछ मौलिक देन है । राम की कोई मौलिक देन नहीं है । कृष्ण की मौलिक देन है । इसलिये हिंदुओं ने भी उन्हें पूर्णावतार नहीं कहा ।
उन्होंने फिर मुझसे पूछा - तो फिर ऐसा करें । 7 नाम मुझे दें । अब बात और कठिन हो गयी थी । मैंने उन्हें 7 नाम दिये - कृष्ण, पतंजलि, बुद्ध, महावीर, शंकर, गोरख, कबीर । उन्होंने कहा - आपने जो 5 छोड़े । अब किस आधार पर छोड़े हैं ? मैंने कहा - नागार्जुन बुद्ध में समाहित हैं । जो बुद्ध में बीज रूप था । उसी को नागार्जुन ने प्रगट किया है । नागार्जुन छोड़े जा सकते हैं । और जब बचाने की बात हो । तो वृक्ष छोड़े जा सकते हैं । बीज नहीं छोड़े जा सकते । क्योंकि बीजों से फिर वृक्ष हो जायेंगे । नये वृक्ष हो जायेंगे । जहाँ बुद्ध पैदा होंगे । वहाँ सैकड़ों नागार्जुन पैदा हो जायेंगे । लेकिन कोई नागार्जुन बुद्ध को पैदा नहीं कर सकता । बुद्ध तो गंगोत्री हैं । नागार्जुन तो फिर गंगा के रास्ते पर आये हुए 1 तीर्थस्थल हैं - प्यारे । मगर अगर छोड़ना हो । तो तीर्थस्थल छोड़े जा सकते हैं । गंगोत्री नहीं छोड़ी जा सकती ।
ऐसे ही कृष्णमूर्ति भी बुद्ध में समा जाते हैं । कृष्णमूर्ति बुद्ध का नवीनतम संस्करण हैं - नूतनतम । आज की भाषा में । पर भाषा का ही भेद है । बुद्ध का जो परम सूत्र था - अप्प दीपो भव । कृष्‍णमूत्रि बस उसकी ही व्याख्या हैं । एक सूत्र की व्याख्या - गहन, गंभीर, अति विस्तीर्ण, अति महत्वपूर्ण । पर अपने दीपक स्वयं बनो । अप्प दीपो भव । इसकी ही व्याख्या हैं । यह बुद्ध का अंतिम वचन था । इस पृथ्वी पर । शरीर छोड़ने के पहले यह उन्होंने सार सूत्र कहा था । जैसे सारे जीवन की संपदा को । सारे जीवन के अनुभव को इस 1 छोटे से सूत्र में समाहित कर दिया था ।
रामकृष्ण, कृष्ण में सरलता से लीन हो जाते हैं । मीरा, नानक, कबीर में लीन हो जाते हैं । जैसे कबीर की ही शाखायें हैं । जैसे कबीर में जो इकट्ठा था । वह आधा नानक में प्रगट हुआ है । और आधा मीरा में । नानक में कबीर का पुरुष रूप प्रगट हुआ है । इसलिए सिख धर्म अगर क्षत्रिय का धर्म हो गया, योद्धा का । तो आश्चर्य नहीं है । मीरा में कबीर का स्त्रैण रूप प्रगट हुआ है । इसलिए सारा माधुर्य, सारी सुगंध, सारा सुवास, सारा संगीत, मीरा के पैरों में घुंघरू बनकर बजा है । मीरा के इकतारे पर कबीर की नारी गाई है । नानक में कबीर का पुरुष बोला है । दोनों कबीर में समाहित हो जाते हैं ।
इस तरह, मैंने कहा - मैंने यह 7 की सूची बनाई । अब उनकी उत्सुकता बहुत बढ़ गयी थी । उन्होंने कहा - और अगर 5 की सूची बनानी पड़े ? तो मैंने कहा - काम मेरे लिये कठिन होता जायेगा ।
मैंने यह सूची उन्हें दी - कृष्ण, पतंजलि, बुद्ध, महावीर, गोरख । क्योंकि कबीर को गोरख में लीन किया जा सकता है । गोरख मूल हैं । गोरख को नहीं छोड़ा जा सकता । और शंकर तो कृष्ण में सरलता से लीन हो जाते हैं । क्या के ही एक अंग की व्याख्या हैं । कृष्ण के ही 1 अंग का दार्शनिक विवेचन हैं ।
तब तो वे बोले - बस, 1 बार और । अगर 4 ही रखने हों ?
तो मैंने उन्हें सूची दी - कृष्ण, पतंजलि, बुद्ध, गोरख । क्योंकि महावीर बुद्ध से बहुत भिन्न नहीं हैं । थोड़े ही भिन्न हैं । जरा सा ही भेद है । वह भी अभिव्यक्ति का भेद है । बुद्ध की महिमा में महावीर की महिमा लीन हो सकती है ।
वे कहने लगे - बस 1 बार और । आप 3 व्यक्ति चुनें ।
मैंने कहा - अब असंभव है । अब इन 4 में से मैं किसी को भी छोड़ न सकूंगा । फिर मैंने उन्हें कहा - जैसे 4 दिशाएं हैं । ऐसे ये 4 व्यक्तित्व हैं । जैसे काल और क्षेत्र के 4 आयाम हैं । ऐसे ये 4 आयाम हैं । जैसे परमात्मा की हमने 4 भुजाएं सोची हैं । ऐसी ये 4 भुजाएं हैं । ऐसे तो 1 ही है । लेकिन उस 1 की 4 भुजाएं हैं । अब इनमें से कुछ छोड़ना तो हाथ काटने जैसा होगा । यह मैं न कर सकूंगा । अभी तक मैं आपकी बात मानकर चलता रहा । संख्या कम करता चला गया । क्योंकि अभी तक जो अलग करना पड़ा । वह वस्त्र था । अब अंग तोड़ने पड़ेंगे । अंग भंग मैं न कर सकूंगा । ऐसी हिंसा आप न करवायें ।
वे कहने लगे - कुछ प्रश्न उठ गये । एक तो यह कि आप महावीर को छोड़ सके । गोरख को नहीं ?
गोरख को नहीं छोड़ सकता हूं । क्योंकि गोरख से इस देश में 1 नया ही सूत्रपात हुआ । महावीर से कोई नया सूत्रपात नहीं हुआ । वे अपूर्व पुरुष हैं । मगर जो सदियों से कहा गया था । उनके पहले जो 23 जैन तीर्थंकर कह चुके थे । उसकी ही पुनरुक्ति हैं । वे किसी यात्रा का प्रारंभ नहीं हैं । वे किसी नयी श्रंखला की पहली कड़ी नहीं हैं । बल्कि अंतिम कड़ी हैं ।
गोरख 1 श्रंखला की पहली कड़ी हैं । उनसे 1 नये प्रकार के धर्म का जन्म हुआ । आविर्भाव हुआ । गोरख के बिना न तो कबीर हो सकते हैं । न नानक हो सकते हैं । न दादू न वाजिद   न फरीद   न मीरा । गोरख के बिना ये कोई भी न हो सकेंगे । इन सबके मौलिक आधार गोरख में हैं । फिर मंदिर बहुत ऊंचा उठा । मंदिर पर बड़े स्वर्ण कलश चढ़े । लेकिन नींव का पत्थर नींव का पत्थर है । और स्वर्ण कलश दूर से दिखाई पड़ते हैं । लेकिन नींव के पत्थर से ज्यादा मूल्यवान नहीं हो सकते । और नींव के पत्थर किसी को दिखाई भी नहीं पड़ते । मगर उन्हीं पत्थरों पर टिकी होती है सारी व्यवस्था । सारी भित्तिया, सारे शिखर । शिखरों की पूजा होती है । बुनियाद के पत्थरों को तो लोग भूल ही जाते हैं । ऐसे ही गोरख भी भूल गये हैं ।
लेकिन भारत की सारी संत परंपरा गोरख की ऋणी है । जैसे पतंजलि के बिना भारत में योग की कोई संभावना न रह जायेगी । जैसे बुद्ध के बिना ध्यान की आधार शिला उखड़ जायेगी । जैसे कृष्ण के बिना प्रेम की अभिव्यक्ति को मार्ग न मिलेगा । ऐसे गोरख के बिना उस परम सत्य को पाने के लिये विधियों की जो तलाश शुरू हुई । साधना की जो व्यवस्था बनी । वह न बन सकेगी । गोरख ने जितना आविष्कार किया । मनुष्य के भीतर अंतर खोज के लिये । उतना शायद किसी ने भी नहीं किया है । उन्होंने इतनी विधियां दीं कि अगर विधियों के हिसाब से सोचा जाये । तो गोरख सबसे बड़े आविष्कारक हैं । इतने द्वार तोड़े मनुष्य के अंतरतम में जाने के लिये । इतने द्वार तोड़े कि लोग द्वारों में उलझ गये ।
इसलिए हमारे पास 1 शब्द चल पड़ा है । गोरख को तो लोग भूल गये - गोरखधंधा शब्द चल पड़ा है । उन्होंने इतनी विधियां दीं कि लोग उलझ गये कि कौन सी ठीक । कौन सी गलत । कौन सी करें । कौन सी छोड़े ? उन्होंने इतने मार्ग दिये कि लोग किंकर्तव्यविमूढ़ हो गये । इसलिए गोरखधंधा शब्द बन गया । अब कोई किसी चीज में उलझा हो । तो हम कहते हैं - क्या गोरखधंधे में उलझे हो ।
गोरख के पास अपूर्व व्यक्तित्व था । जैसे आइंस्टीन के पास व्यक्तित्व था । जगत के सत्य को खोजने के लिये जो पैने से पैने उपाय अलबर्ट आइंस्टीन दे गया । उसके पहले किसी ने भी नहीं दिये थे । अब उनका विकास हो सकेगा । अब उन पर और धार रखी जा सकेगी । मगर जो प्रथम काम था । वह आइंस्टीन ने किया है । जो पीछे आयेंगे । वे नंबर 2 होंगे । वे अब प्रथम नहीं हो सकते । राह पहली तो आइंस्टीन ने तोड़ी । अब इस राह को पक्का करने वाले, मजबूत करने वाले, मील के पत्थर लगाने वाले, सुंदर बनाने वाले, सुगम बनाने वाले बहुत लोग आयेंगे । मगर आइंस्टीन की जगह अब कोई भी नहीं ले सकता । ऐसी ही घटना अंतर जगत में गोरख के साथ घटी ।
लेकिन गोरख को लोग भूल क्यों गये ? मील के पत्थर याद रह जाते हैं । राह तोड़ने वाले भूल जाते हैं । राह को सजाने वाले याद रह जाते हैं । राह को पहली बार तोड़ने वाले भूल जाते हैं । भूल जाते हैं । इसलिए कि जो पीछे आते हैं । उनको सुविधा होती है संवारने की । जो पहले आता है । वह तो अनगढ़ होता है । कच्चा होता है । गोरख जैसे खदान से निकले हीरे हैं । अगर गोरख और कबीर बैठे हों । तो तुम कबीर से प्रभावित होओगे । गोरख से नहीं । क्योंकि गोरख तो खदान से निकले हीरे हैं । और कबीर, जिन पर जौहरियों ने खूब मेहनत की । जिन पर खूब छेनी चली है । जिनको खूब निखार दिया गया है ।
यह तो तुम्हें पता है न कि कोहिनूर हीरा जब पहली दफा मिला । तो जिस आदमी को मिला था । उसे पता भी नहीं था कि कोहिनूर है । उसने बच्चों को खेलने के लिये दे दिया था । समझकर कि कोई रंगीन पत्थर है । गरीब आदमी था । उसके खेत से बहती हुई 1 छोटी सी नदी की धार में कोहिनूर मिला था । महीनों उसके घर पडा रहा । कोहिनूर बच्चे खेलते रहे । फेंकते रहे । इस कोने से उस कोने । आंगन में पड़ा रहा ।
तुम पहचान न पाते कोहिनूर को । कोहिनूर का मूल वजन 3 गुना था आज के कोहिनूर से । फिर उस पर धार रखी गई । निखार किये गये । काटे गये । उसके पहलू उभारे गये । आज सिर्फ एक तिहाई वजन बचा है । लेकिन दाम करोड़ों गुना ज्यादा हो गये । वजन कम होता गया । दाम बढ़ते गये । क्योंकि निखार आता गया । और, और निखार ।
कबीर और गोरख साथ बैठे हों । तुम गोरख को शायद पहचानो ही न । क्योंकि गोरख तो अभी गोलकोंडा की खदान से निकले कोहिनूर हीरे हैं । कबीर पर बड़ी धार रखी जा चुकी । जौहरी मेहनत कर चुके । कबीर तुम्हें पहचान में आ जायेंगे ।
इसलिये गोरख का नाम भूल गया है । बुनियाद के पत्थर भूल जाते हैं ।
गोरख के वचन सुनकर तुम चौंकोगे । थोड़ी धार रखनी पड़ेगी । अनगढ़ हैं । वही धार रखने का काम मैं यहां कर रहा हूं । जरा तुम्हें पहचान आने लगेगी । तुम चमत्कृत होओगे । जो भी सार्थक है । गोरख ने कह दिया है । जो भी मूल्यवान है । कह दिया है ।
तो मैंने सुमित्रानंदन पंत को कहा कि गोरख को न छोड़ सकूंगा । और इसलिए 4 से और अब संख्या कम नहीं की जा सकती । उन्होंने सोचा होगा स्वभावत: कि मैं गोरख को छोडूंगा । महावीर को बचाऊंगा । महावीर कोहिनूर हैं । अभी कच्चे हीरे नहीं हैं । खदान से निकले । एक पूरी परंपरा है 23 तीर्थंकरों की । हजारों साल की । जिसमें धार रखी गई है । पैने किये गये हैं । खूब समुज्ज्वल हो गये हैं । तुम देखते हो । चौबीसवें तीर्थंकर हैं महावीर । बाकी 23 के नाम लोगों को भूल गये । जो जैन नहीं हैं । वे तो 23 के नाम गिना ही न सकेंगे । और जो जैन हैं । वे भी 23 का नाम क्रमबद्ध रूप से न गिना सकेंगे । उनसे भी भूल चूक हो जायेगी । महावीर तो अंतिम हैं - मंदिर का कलश । मंदिर के कलश याद रह जाते हैं । फिर उनकी चर्चा होती रहती है । बुनियाद के पत्थरों की कौन चर्चा करता है ।
आज हम बुनियाद के 1 पत्थर की बात शुरू करते हैं । इस पर पूरा भवन खड़ा है - भारत के संत साहित्य का । इस 1 व्यक्ति पर सब दारोमदार है । इसने सब कह दिया है । जो धीरे धीरे बड़ा रंगीन हो जायेगा । बड़ा सुंदर हो जायेगा । जिस पर लोग सदियों तक साधना करेंगे । ध्यान करेंगे । जिसके द्वारा न मालूम कितने सिद्ध पुरुष पैदा होंगे । ओशो 

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