20 सितंबर 2012

तब फ़िर क्या पा सकते हैं हम ?


श्री सदगुरु महाराज की जय । सादर चरण स्पर्श महाराज । सभी प्रिय ब्लाग बंधुओं को मेरा नमस्कार । बहुत समय हुआ । ब्लॉग पर मेरी और से कुछ प्रेषित नहीं हुआ । बहुत बार मन में आया कि कुछ लिखूँ । पर हर बार यही सोच कर रह गया कि - अगर समंदर में 2 बूँद पानी डाल भी दें । तो क्या फर्क पड़ेगा । और देखा जाय । तो वो 2 बूँद भी उसी समुन्दर से मिली । या फिर दिन के उजाले में दीये के जलाने जैसा । और दीये की ज्योति भी उस प्रकाश पुंज सूर्य से प्रज्वलित हुई हो ।
सच्चा मार्ग और ज्ञान किसी व्यक्ति के जीवन में कितना प्रभाव डाल सकता है । इसकी कल्पना भी इस ज्ञान और मार्ग से वंचित लोग नहीं कर सकते । ऐसा मैं इसलिए कह रहा हूँ कि - ऐसा मेरे साथ हो रहा है । एक साधारण से बहुत निम्न स्तर का व्यक्ति मैं जब इसका पूर्ण लाभ उठा रहा हूँ । तब बाकियों के लिए मैं इसे सुनहरा अवसर मानता हूँ । अपनी युवावस्था में नौकरी में अपने से उच्च पद व्यक्तियों से किस प्रकार बात करनी है । इस बात की भी जानकारी नहीं थी । और इसी वजह से उनसे बहुत 

जरूरी बात होने पर भी संपर्क नहीं करना । शायद आज भी आप लोगों में से किसी के साथ ऐसा होता हो । परन्तु इस मार्ग से जुड़ने के मात्र 4-5 महीनो में जो मेरे जीवन में परिवर्तन आये हैं । उन्हें मुझसे जुड़े लोग प्रत्यक्ष ही अनुभव भी करते हैं । और इसकी वजह भी पूछते हैं । परन्तु मेरे पास इस बात का कोई उत्तर नहीं है । सिवाय इसके कि - मैं एक सच्चे ज्ञान मार्ग से जुड़ा । पूछने पर पता चला कि - प्रकृति नियमों के आधार पर अपना कार्य कर रही है । और सगुरों के लिए कुछ ख़ास नियम होते हैं । परन्तु पालन उनका भी उतना ही आवश्यक है । और इसमें कोई छूट नहीं । 1 वह भी समय था । जब मैं परिस्थियों से डर कर 

भाग खड़ा हुआ था । और आज स्थिति ये है कि - किसी भी परिस्थिति के हरेक पहलु की वजह और जानकारियां स्वतः ही उपलब्ध हो जाती हैं । जो चीजे कभी बहुत प्रभावित करती थी । आज उनके लिए कोई स्थान नहीं है । कुछ चीजें जिनको पाने को लालायित रहते थे । आज बिना प्रयास के मिल रही हैं । तब भी कोई आश्चर्य नहीं । पहले अपनी बात को किस प्रकार प्रस्तुत करना है । नहीं जानता था ( प्रश्न कैसे करना है ) और आज गुरु कृपा से उत्तर भी मालूम है ।
जीवन का कोई भी ऐसा पहलू नहीं है । जो इससे अछूता हो । जैसे - बौद्धिक । आध्यात्मिक । भौतिक । आर्थिक । और सामाजिक । इन सब पर इसका प्रभाव साफ़ साफ़ दिख रहा है । आप में से बहुत से लोग किसी न

किसी परेशानी के हल के लिए भटकते होंगे । और यहाँ जुड़े होंगे । और मरता क्या न करता । वाली स्थिति में इसे मानने पर मजबूर होंगे । परन्तु यदि उसी सच्चे भाव से 4-5 माह भी जुड़े रहे । तो शायद स्थितियां और भी बेहतर बनें । और आपके सब दुखों का मूल कारण ही आपको समझ आ जाय । सत्य को केवल पाना । या जानना ही कठिन है । परन्तु यदि 1 बार उससे जुड़ाव हो जाय । तब सब कुछ शीशे की तरह साफ़ हो जाता है । कहीं किसी प्रकार का संदेह नहीं रहता । कोई प्रश्न बाकी नहीं रहता । आज धर्म अपने विकृत रूप में है । और इसमें आस्था रखने वाले को बिलकुल विपरीत दिशा में प्रशस्त करता है । जिसकी बहुत सी वजह हैं । और मैं उन पर कोई विचार नहीं रखूँगा । परन्तु इतना जरूर है कि - उस सत्य सनातनता का अंश आज भी बाकी है । और हमेशा रहेगा । जो इन भटके हुओं में से कुछ को चुनकर सही राह दिखाता है ।
यहाँ जुड़ने के पश्चात मैंने केवल अपने आपको जाना कि - मै कौन हूँ ? और इस स्व के परिचय के बाद से आगे का रास्ता बहुत सरल हो गया है । दुनिया पोथियों और ग्रंथों के पीछे पागल है । और इसके लिए खून खराबे तक से कोई गुरेज़ नहीं रखते । लेकिन खुद क्या हैं ? इसका कोई भान नहीं । मेरे कई मित्र रात रात भर बैठे अध्यात्म विषय पर नेट पर खोज करते रहते हैं ( कभी मैं भी उनमे से 1 था ) और यह नहीं जानते कि - जो बोझ प्रति रात्रि वह उपलब्ध

ज्ञान के रूप में अर्जित कर रहे हैं । कल यदि उसे अपने से दूर करना पड़े । तब कितना कष्ट होगा ? रह रह कर - विधियां । मुद्राएं । स्थितियां । और दुसरे के अनुभव खुद में खोजेंगे । और संभव है कि - उनके साथ ऐसा न हो । क्योंकि वे दूसरों की खोज अपने रूप में देखना चाहेंगे । और सब अपने अपने संस्कारों में बंधे हैं । तो अनुभवों की समानता की कोई बात ही नहीं ।
यदि सभी बाहरी भौतिक वस्तुओं को छोड़ कर । ये जानने की कोशिश करें कि - मुझमे मेरा भान करने वाला मैं कौन हूँ ? और मै कहने वाला साधन कौन है ? या तुममें तुम्हारी तू कौन है ? इसका ज्ञान होते ही सब कुछ जाना हुआ हो जायेगा । बाहर किसको क्या मिला ? मोती भी सीप में बंद सागर की तलहटी पर ही मिलते हैं । बाहर तो केवल - उछला नमकीन पानी मात्र । जो है । भीतर है । आवश्यकता है । तो कुशल गोताखोर की । और हम पैर भीगने के डर से ही किनारे पर ही खड़े रह जाते हैं । तब क्या पा सकते हैं हम ? आपका निकृष्ट अति निकृष्ट दास - अशोक दिल्ली ।

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राजीव जी ! गणेश चतुर्थी का क्या महत्व है ? कहते हैं । इस दिन चन्द्र दर्शन नहीं करना चाहिये । क्योंकि कलंक लगता है । भगवान श्रीकृष्ण को भी कलंक लगा था । इस बारे में कुछ बताईये । धन्यवाद । सोहन  गोधरा । टिब्बी । हनुमान गढ । राजस्थान ।
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विशेष - उपरोक्त दोनों पत्रों ( मेल ) के लेखक हमारे ( मंडल के ) शिष्य हैं । सोहन गोधरा (  राजस्थान ) 1 वर्ष से अधिक समय से जुङे हैं । और अशोक ( दिल्ली  ) को अभी सिर्फ़ 5 महीने ( लगभग ) हुये हैं । ये दोनों मेल मैंने ज्यों के त्यों प्रकाशित किये हैं । समर्पण । शिष्यता की पात्रता । श्रद्धा भाव । और ज्ञान को ग्रहण करना । शिष्य के - ये गुण उसमें क्या 

परिवर्तन करते हैं ? उसे क्या देते हैं ? कल ही प्राप्त  इन पत्रों से आसानी से समझा जा सकता है । इन दोनों 

पत्रों के भाव भाषा आदि आदि में कितना ( जमीन आसमान का ) अन्तर है ? कोई साधारण व्यक्ति भी आसानी से समझ सकता है ।
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A Speechless Message With Deep Feelings - Both Are Quiet But Have Hundreds Of Things Running In The Mind . Both Are Missing Each-other Badly But Want The
Other One To Initiate The Conversation. Both Want To Be With Each- other, To Fight, To Argue, To Show Love, But Would Pretend That They Are Fine Without Each-other. Both Want To Meet Each-other, But Will Not 

Say Anything And Wait Silently They Would Send Each-other Silly Msgs But Would Not Tell That - Stupid..I am Missing U .This Is Love...Sometimes We Miss Out On Most Lovable Moments
Just Because We Want The Other One To Take The First Step. Showing Love Might Improve The Situation But Showing Ego Definitely Ruins It ♥♥ By Piyuesh

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When we honestly ask ourselves which person in our lives means the most us, we often find that it is those who, instead of giving much advice, solutions, or cures, have chosen rather to share our pain and touch our wounds with a gentle and tender hand… The friend who can be silent with us in a moment of despair or confusion, who can stay with us in an hour of grief and bereavement, who can tolerate not knowing, not curing, not healing and face with us the reality of our powerlessness, that is a friend who cares - Henri Nouwen
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क्यों दुनियाँ ने ये रस्म बनायी है । करके इतना बङा कहते हैं - जा बेटी ! तू परायी है ।
पहले दिन से ही उसको ये पाठ पढाया जाता है । सजा के लाल जोङे में दुल्हन बनाया जाता है ।

छुङा देती है बेटी से बाबुल का ये घर । क्यों दुनियां ने ये जालिम रस्म बनायी है ?
करके इतना बङा कहते हैं - जा बेटी ! तू परायी है ।
रोते हैं खुद फ़िर उसको भी बहुत रुलाते हैं । अपने हाथों से दरबाजे तक छोङ आते हैं ।
हर दिन याद करते हैं बहुत याद आते हैं । इस  रस्म ने क्यों बेटी से ही की बेवफ़ाई है ।
करके इतना बङा कहते हैं - जा बेटी ! तू परायी है ।
साथ बेटी के फ़िर बहुत दहेज भी जायेगा । शायद फ़िर भी न बोझ ये सर से उतर पायेगा ।
रोयेगी माँ जाते देख बाबुल न संभल पायेगा । देख जुदाई बेटी को क्यों इस रस्म ने सजा सुनायी है ?
करके इतना बङा कहते हैं - जा बेटी ! तू परायी है । By Piyuesh
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I still recall the times I've been through . Confused and I didn't know what to do…
I was lost in the dark..With my lonely, broken heart..I was astray..Then you came along..You took my hand and eased my mind . When I almost gave up...you gave me hope..When things went wrong you made them right..You were always there to lend a helping hand .You made me strong as the 

days went on..You've made my days so bright .You made me live again..Now look at me, a different me..Back on my feet again..Now I'm not afraid to face the world..Cause you taught me how to be strong..You made me live again - Janet Basco
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I’ve learned that no matter what happens, or how bad it seems today, life does go on, and it will be better tomorrow .I’ve learned that you can tell a lot about a person by the way he/she handles these three things: a rainy day, lost luggage, and tangled Christmas tree lights . I’ve learned that regardless of your relationship with your parents, you’ll miss them when they’re gone from your life . I’ve learned that making a “ living ” is not the same thing as making a “life . I’ve learned that life sometimes gives you a second chance . I’ve learned that you shouldn’t go through life with a catcher’s mitt on both hands; you need to be able to throw something back . I’ve learned that whenever I decide something with an open heart, I 

usually make the right decision . I’ve learned that even when I have pains, I don’t have to be one . I’ve learned that every day you should reach out and touch someone .People love a warm hug, or just a friendly pat on the back . I’ve learned that I still have a lot to learn .I’ve learned that people will forget what you said, people will forget what you did, but people will never forget how you made them feel .- Maya Angelou
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रसोई भण्डार घर में चावल को सालों साल - कीटाणु मुक्त । साफ़ । उजले । एवं पौष्टिकता से ( यथावत ) भरपूर बनाये रखने के लिये कुछ सरल घरेलू उपाय - घर में अनाज का भंडारण हम सभी करते हैं । इनमें गेहूँ और दालों को तो आसानी से सहेज लिए जाता है । लेकिन चावलों को कीड़ों के 

प्रकोप से बचा पाना प्रायः मुश्किल होता है । निम्नलिखित उपायों को अपना कर चावल को भी काफी समय तक सुरक्षित रखा जा सकता है ।
1 चावल के बीच बीच में खड़े नमक की डल्लियाँ या पिसे नमक की छोटी छोटी पोटलियाँ डाल कर रखने से चावल साल भर खराब नहीं होते हैं ।
2 चावल में नीम या मैथी की सूखी पत्तियाँ मिलाकर भी रखा जा सकता है ।

3 यदि ठण्ड के मौसम में चावल को रात भर के लिए ओस में रख कर सुबह छानकर डिब्बे में भर कर रख लिया जाये । तो इसके बाद न तो चावल खराब होंगे । और न ही उनमें कभी कीड़े लगेंगे ।
4 चावल को अरंडी के तेल में चुपड़ कर रखने से चावल सालों साल खराब नहीं होते हैं । 
5 खाने वाले चूने की थोडा सी मात्रा चावल में अच्छी तरह मिलाकर बंद डिब्बे में भरकर रखने से चावल खराब नहीं होते हैं ।
6 हल्दी पाऊडर की छोटी छोटी पोटलियाँ बनाकर चावलों के बीच बीच में रखने से भी चावल खराब नहीं होते हैं । 
7 करेले के सूखे छिलके चावल में मिलाकर रखने से चावल में कीड़े नहीं लगते हैं ।
8 बरसात के दिनों में चावल के डिब्बे में थोड़े स्याही सोखता पेपर रखने से बरसात के मौसम में चावल सीलते नहीं हैं ।
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My name is Zobira,I believe that this likeness that I came knocking at the door of your heart, that you open for me to enter . I will be very grateful if we can establish this relationship. I will be stopping so far till I hear from you,Is me , Zobira

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सत्यसाहिब जी सहजसमाधि, राजयोग की प्रतिष्ठित संस्था सहज समाधि आश्रम बसेरा कालोनी, छटीकरा, वृन्दावन (उ. प्र) वाटस एप्प 82185 31326