02 सितंबर 2012

सदगुरु सदाफ़ल देव


राजीव जी नमस्कार ! और साथ ही आपको धन्यवाद । आपके कई लेख पढे । कुछ सीखने को मिला । विहंगम योग के बारे में बतायें । और सदगुरु सदाफ़ल देव जी के बारे में भी बतायें । विहंगम योग में भी सतनाम की बात करते हैं । और ध्यान के लिये गीता के अध्याय 6 के श्लोक 13 की क्रिया को बताते हैं । जिसमें नाक के तिकोने पर ध्यान लगाने को बताते हैं । और कोई नाम नहीं देते । गुरु सदाफ़ल देव जी की फ़ोटो की पूजा करके फ़ोटो को सामने रखकर ध्यान लगायें । सतगुरु की कृपा से " सतनाम " अपने आप लख जायेगा ? और ध्यान से पहले 11 बार गायत्री मंत्र का जाप भी करना है ? गुरु की आज्ञा है । और कबीर साहब को सनातन गुरु बताते हैं । जो साधना के दौरान गुरु सदाफ़ल देव को मिले थे । स्वर वेद और कबीर साहिब की अनुराग सागर या बीजक उनके ग्रन्थ हैं । ये ध्यान आत्मा के लिये है । अगर कोई दैहिक और सांसारिक परेशानी आर्थिक तंगी आदि के लिये हवन आश्रम से दीक्षित qualified से कराने या खुद करने के लिये बताया जाता है । और वो भी परम पुरुष की ही बात करते हैं । जो सत्य और असत्य

से परे है । और सदगुरु सदाफ़ल देव जी को dhara adhra ( रोमन से हिन्दी करते समय समझ नहीं आया ये शब्द ) के पार बताते हैं । जो परम पुरुष तक जा सकते हैं । कृपया इसके बारे में detail से बतायें । धन्यवाद ।  जोरबा टू बुद्धा - ओशो..लेख  पर एक टिप्पणी । नाम नहीं लिखा ।
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और अब देखिये । सदाफ़ल द्वारा बताया गया गीता का श्लोक -
समं कायशिरोग्रीवं धारयन्नचलं स्थिरः । सम्प्रेक्ष्य नासिकाग्रं स्वं दिशश्चानवलोकयन । 6-13
अपनी काया । सिर और गर्दन को । 1 सा सीधा । धारण कर । अचल रखते हुये । स्थिर रहकर । अपनी नाक के । आगे वाले भाग की ओर । एकाग्रता से देखते हुये । और किसी दिशा में । नहीं देखना चाहिये ।

और फ़िर देखिये । जो सदाफ़ल ने नहीं बताया । इसमें - सार को जानने वाले और ज्ञानिनस्तत्त्वदर्शिनः में तत्व दर्शित का मतलब क्या है ? उसके ( 6-13 ) बजाय पहले इस श्लोक पर खास गौर करें ।
तद्विद्धि प्रणिपातेन परिप्रश्नेन सेवया । उपदेक्ष्यन्ति ते ज्ञानं ज्ञानिनस्तत्त्वदर्शिनः । 4-34
सार को । जानने वाले । ज्ञानमंदों को । तुम प्रणाम करो । उनसे प्रश्न करो । और उनकी सेवा करो । वे तुम्हें । ज्ञान में । उपदेश देंगे । ( ज्ञानिनस्तत्त्वदर्शिनः ) इतने वाक्यांश का अर्थ टीका में नहीं है । सिर्फ़ - उपदेक्ष्यन्ति ते ज्ञानं का ही अर्थ - वे तुम्हें । ज्ञान में । उपदेश देंगे । लिखा है ।
और ये भी गीता में ही लिखा है ।
स्पर्शान्कृत्वा बहिर्बाह्यांश्चक्षुश्चैवान्तरे भ्रुवोः । प्राणापानौ समौ कृत्वा नासाभ्यन्तरचारिणौ । 5 -27
यतेन्द्रियमनोबुद्धिर्मुनिर्मोक्षपरायणः । विगतेच्छाभयक्रोधो यः सदा मुक्त एव सः । 5 -28
बाहरी स्पर्शों को । बाहर कर । अपनी दृष्टि को । अन्दर की ओर । भ्रुवों के मध्य में । लगाये । प्राण और अपान का । नासिकाओं में । 1 सा बहाव कर । इन्द्रियों । मन । और बुद्धि को । नियमित कर । ऐसा मुनि । जो मोक्ष प्राप्ति में ही । लगा हुआ है । इच्छा । भय । और क्रोध से मुक्त । वह सदा ही मुक्त है ।
गीता प्रेस गोरखपुर वालों की मुद्रण गलती से ये महत्वपूर्ण श्लोक गीता में मुद्रित नहीं हो पाया । इसको भी पढें ।

देखम नाकम कहम अन्यम निहारम मम मुखम एवं खीचम चित्रम द्वारा फ़ोनम ।
पार्थ फ़िर स्व चित्रम स्वयं देखम कैसे लगतम हम योगा करतम ।
श्रीकृष्ण बोले - हे अर्जुन ! ये योग करते समय तुम दोनों आँखों से अपनी नाक की नोक को देखो । और द्रौपदी को बोलो । इस योग को करते समय तुम्हें देखे कि तुम्हारा मुख कैसा लगता है । और अपने मोबायल फ़ोन द्वारा तुम्हारा चित्र खींचे । फ़िर उस चित्र को तुम स्वयं देखो कि - इस अदभुत योग ? को करते हुये तुम कैसे लग रहे थे । अर्थात तुम्हारी क्या स्थिति थी ?

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और ये देखिये । सदाफ़ल जी के बारे में नेट से प्राप्त जानकारी । और सदाफ़ल जी के 2 फ़ोटो ।
Sadaguru Sadafal Dev Jee Maharaj - Vihangam Yoga is an ancient meditation technique practiced by Indian seers and sages. In the current time, it is established by H.H. Sadguru Sadafaldev Ji Maharaj. Vihangam Yoga is also known as Brahmavidya, Madhu Vidhya, Para Vidhya in the Indian ancient most scriptures and Vedas. "Vihangam" literally means "bird". Just as a bird leaves its base on the earth to fly high in the sky, so does Vihangam Yoga to enable the human Soul ( Atma ) to cut off its moorings in the Prakriti ( phenomenal world ) and realize its true and free nature.
This knowledge is emerged from Brahma so it is also named as Brahma Vidhya and who ever has gained this knowledge by practising it called Brahma Rishi. Through the Vihangam Yoga meditation, one easily raises his soul's energy to open "Kundalini sakti" ( the hidden Potential in all of us ) under the able guidance of a true Sadguru and attains Soul's conscious state, from where it actually starts the pray to "Supreme 
Soul". This is a situation where the soul is in its own state i.e it is not attached with Maan ( Intellect or

Mind ) and Prana - the true form.
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और ये लिंक । क्लिक करें ।
http://vihangamyoga.tripod.com/id1.html
http://www.youtube.com/watch?v=tsm25TRIGAQ
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A Girl and A Boy were standing in front of a mirror, The Girl asked - What do you see..? The Boy smiled :) and said - The rest of my life ♥♥
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उड़ के जाते हुए पंछी ने । बस इतना ही देखा । देर तक हाथ हिलाती रही । वो शाख़ फ़िज़ा में ।
अलविदा कहती थी । या पास बुलाती थी उसे । गुलज़ार 
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ਇੱਕ ਦਰੀਆ ਵਗਣਾ ਹੰਝੂਆਂ ਦਾ । ਜਿਹਦਾ ਰਸਤਾ ਸਾਡੀ ਅੱਖ ਸੱਜਣਾ ।
ਪੈਰਾਂ ਵਿੱਚ ਲਤੜੇ ਜਾਵਾਂਗੇ । ਤਾਨੇ ਮਾਰੂ ਹਰ ਕੱਖ ਸੱਜਣਾ ।
ਸਾਡਾ ਵਾਸਤਾ ਈ ਮੈਨੂੰ ਨਾ ਰੋਲੀਂ । ਕਦੀ ਹੋਵੀਂ ਨਾ ਤੂੰ ਵੱਖ ਸੱਜਣਾ ।
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चलिये बहुत से प्रश्नों के उत्तर देने का कार्य एकत्र हो गया । जल्दी ही मिलते हैं ।

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सत्यसाहिब जी सहजसमाधि, राजयोग की प्रतिष्ठित संस्था सहज समाधि आश्रम बसेरा कालोनी, छटीकरा, वृन्दावन (उ. प्र) वाटस एप्प 82185 31326