28 अगस्त 2012

मेरे रहस्यमय सपने - कुमार गौरव


राजीव भाई जी नमस्कार । आपसे पूछा गया प्रश्न - तभी आवाज आई - यही काल पुरुष है ? heading से ( क्लिक करें ) हूबहू यही सपना मेरे साथ भी होता है । last के 5 lines को छोङकर जिसमें आवाज आती है - यही काल पुरुष है ..कृपया जल्द ही समाधान कीजिये । आपके लेख की प्रतीक्षा है  - कुमार गौरव ।
http://ohmygod-rajeev.blogspot.in/2012/05/blog-post_20.html ( सपना जानने हेतु क्लिक करें )
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स्वपनिल तिवारी के इस प्रश्न का उत्तर दिया जा चुका है । पर कहाँ ? ये मुझे पता नहीं । बस इतना पता है । 20 मई 2012 को यह प्रश्न छपा था । इसी के कुछ दिन बाद इसका उत्तर भी मई 2012 मही्ने में ही शायद - सत्यकीखोज ब्लाग में छप चुका है । दरअसल गलती मेरी भी है । ऐसे उत्तर छापते समय प्रश्न वाले लेख में मुझे उसका लिंक जोङ कर सूचित कर देना चाहिये । जो कि बहुत से कार्यों से जुङा होने के कारण मैं नहीं कर पाता । दूसरी बात यह भी है कि - एक बार मेरा ब्लाग पढना शुरू कर देने वाले  फ़िर धीरे धीरे पूरे ( सभी 10 ) ब्लाग ही पढते हैं । इसलिये उन्हें अपने उत्तर और तमाम नयी जानकारी मिल जाती है । इसी सोच के चलते मैं बहुत सी चीजें अनदेखी कर देता हूँ । चलिये । फ़िर एक बार स्वपन रहस्य पर बात करते हैं ।
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अभी कोई 20 साल पहले ही जब भारत में पाश्चात्य संस्कृति तेजी से फ़ैलना शुरू हुयी थी । बिज्ञान की चहुमुखी बल्कि बहुमुखी तरक्की से देश दुनियाँ हतप्रभ से थे । तंत्र मंत्र भूत प्रेत तो छोङो । भगवान के ही अस्तित्व पर प्रश्न चिह्न सा लग गया था । बिज्ञान ही सब कुछ है । और एक दिन बिज्ञान हर चीज पर विजय प्राप्त कर लेगा । ऐसी पक्की धारणा बन गयी थी । लोग बिज्ञानी नशे में मदहोश थे ।
लेकिन सिर्फ़ 500 साल पहले । इसी प्रथ्वी पर गोरखनाथ जैसी हस्ती मौजूद थी । और तंत्र मंत्र का इतना प्रचण्ड बोलबाला था कि सात्विक भक्ति का %  नगण्य था । घर घर में तंत्र मंत्र घुसा हुआ था । और हैरतअंगेज बात यह थी कि औरतों की हिस्सेदारी इसमें बहुत ज्यादा थी । वैसे भी आप गौर करें । तो कितनी ही विकसित सभ्यता हो । औरत का टोना टोटका में बेहद रुझान होता ही है । फ़िर चाहे वह उच्च से उच्च पदासीन शिक्षित व्यक्ति की पत्नी हो । या फ़िर निरी घरेलू ग्रामीण औरत ।

लेकिन उस समय स्त्री पुरुष का जो रुझान तंत्र मंत्र के प्रति जागा । वह कोई अलौकिक बिज्ञान सीखने की चाह नहीं थी । बल्कि इस क्षेत्र में जाते ही " कामवासना का मुक्त भोग " की खुली छूट थी । जो तंत्र बिज्ञान की जरूरत के नाम पर लगभग मिथ्या प्रचारित कर दिया गया था । जैसा कुछ कुछ ओशो के - जोरबा टू बुद्धा और संभोग से समाधि का ( मगर उल्टा ) मनमाना अर्थ निकाल कर किया गया । अगर आप कल्पना नहीं कर सकते । तो उस समय देवकीनन्दन खत्री के उपन्यास चन्द्रकांता सन्तति और इसी नाम के सीरियल जैसा माहौल था । यह स्थिति तब थी । जब कबीर के ( औपचारिक ) गुरु वैष्णव सन्त रामानन्द उपस्थित थे । और उनका बहुत प्रभाव भी था । लेकिन इस क्षेत्र में गोरखनाथ का डंका बज रहा था । और ठीक उसी समय इस अज्ञान  तिमिर का समूल नाश करने के लिये सतपुरुष के प्रतिनिधि

लीला सन्त कबीर प्रकट हुये ।
आप यकीन करें । तो प्रथ्वी पर अभी दूसरे रूप में ठीक इसी तरह का माहौल है । प्रथ्वी पर एक से एक दिग्गज शक्तियाँ अप्रत्यक्ष रूप में मौजूद हैं । और उनकी गतिविधियाँ तेजी पर हैं । कैसे इसका उदाहरण देखिये ।
- आप देख रहे होंगे । प्रथ्वी पर इस समय सौन्दर्य और यौवन की बहार सी आयी हुयी है । अप्सराओं से भरपूर स्वर्ग जैसे धरती पर ही उतर आया हो । कामभावना कामवासना का जैसा संचार इस समय है । वैसा कम ही समय में होता है । सवाल ये है । इससे पहले क्या सुन्दर सौष्ठव  स्त्री पुरुष ( इस % पर ) नहीं होते थे ।
- दूसरा जो सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है । आप TV रियल्टी शो आदि में देखते होंगे - नृत्य । संगीत । अभिनय । ज्ञान । बिज्ञान । मनोरंजन । तमाम बाह्य आंतरिक कलाओं अद्वितीय अमानवीय

क्षमताओं का जैसा विस्फ़ोट सा ( इस % पर ) हुआ है । वैसा उसी समय होता है । जब नुमायश उठने वाली हो । और एक लूट सी मची हो । तमाम चीजें जैसे सरल सहज हो गयी हों ।
- एक और ध्यान दें । तो अभी हर चीज चरम पर है - आस्तिकता । नास्तिकता ।  धर्म । अधर्म । ज्ञान । अज्ञान । देवत्व । असुरत्व । शिष्टता । फ़ूहङता । पाप । पुण्य । और निश्चय ही ये मानवीय नहीं है । वरन बाह्य आवेशित हैं ।
- जैसे कुछ समय पहले सोवियत रूस टूटा था । और अव्यवस्था का बोलबाला था । एक प्याज टमाटर ब्रेड स्लाइस जैसी कीमत पर लङकी सेक्स करने देती थी । लूटमार सी मची हुयी थी ।

वही स्थिति आज प्रथ्वी की है । क्योंकि 11-11-2011 को इस प्रथ्वी और इसके जीवों (  सिर्फ़ मनुष्य ) का लेखा जोखा सरकारी स्तर पर समाप्त हो चुका है । और वैसी ही लूट अभी भी मची हुयी है । नया कार्यकाल । नयी व्यवस्था तक ऐसी ही अराजकता होती रहेगी । जिसको देखकर एक ही धारणा बनेगी - सब चलता है ।
- संक्षेप में । आप मौजूदा परिदृश्य को देखें । तो सभी कुछ अमानवीय सा है ।
और कुमार गौरव के इस प्रश्न का बहुत कुछ सम्बन्ध भी इसी बात से है । मेरे पास पिछले कुछ ही दिनों में तमाम केस ऐसे आये । जिनका सम्बन्ध अलौकिक घटनाओं व्यक्तियों से था । कोई भूत प्रेत से प्रभावित था । कोई तंत्र मंत्र से प्रभावित था । कोई अजीव घटनाओं का शिकार था । तो कोई समझ ही नहीं पा रहा था - जो अजीवोगरीब हो रहा है । उसका क्या मतलब है ? और उसके 

लिये क्या करूँ । और आप देखें । तो इन सभी का उत्तर इसी बात में है कि - जो हो रहा है । वह मानवीय नहीं है । और समझ से बाहर है । यानी ऐसी शक्तियाँ जीवों ( मनुष्यों ) को अपने अपने शिकंजे में ले रही हैं । क्योंकि अभी कोई सत्ता ( विधिवत ) कार्य नहीं कर रही । और किसी की कोई सुनवाई नहीं है । अतः वे लोग ही ठीक ठाक है । जो स्वयं ( आध्यात्म स्तर पर ) मजबूत हैं । या मजबूत लोगों के साथ पहले से जुङे हुये हैं । हालांकि ऐसा नहीं है कि ये तवाही सिर्फ़ इसी समय हुयी हो । पहले भी होती रही है । पर होती कुछ कुछ ऐसी ही स्थितियों में है ।
अतः कुमार गौरव ( और ऐसे अनुभवों से जुङे लोगों ) के  इस प्रश्न के लिये प्रथ्वी के माहौल में फ़ैली वे ( अच्छी 

बुरी । सात्विक तामसिक ) योग तरंगे जिम्मेदार हैं । जो मनुष्य को प्रयत्क्ष अप्रत्यक्ष उन दिमागी हिस्सों में ले जा रही है । जो आम स्थिति में बन्द होते हैं । और अपवाद स्वरूप पहले दुर्लभ से मामलों में ( अधिकतम 5 % ) देखने को मिलते थे । पर ये % इस समय बहुत बढा हुआ है । इसीलिये आपको हर चीज जैसे चरम पर नजर आ रही है । सबसे बङी बात कालदूतों की पूरी सेना ही इस समय सक्रिय है । और एक तरह से प्रभावी भी है ।
ऐसे स्वपनों का कारण हमारे तीसरे " कारण शरीर " से संबन्धित हैं । शरीर की चित्रा नाङी में ये दृश्य फ़ाइलें भरी होती हैं । ..जारी

- समय बहुत तेजी से भागता है । कई लेख आधे छूट गये । इनको अब पूरा करने की कोशिश करूँगा । और कोशिश रहेगी । लेख पूरा करके ही पोस्ट करूँ ।

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