17 अप्रैल 2012

इस दुनियाँ में इससे ज्यादा आनन्दित कुछ नहीं

नमस्कार राजीव जी ! कैसे हैं आप ? मैं आपको बहुत ही दिनों बाद यह मेल कर रहा हूँ । कुछ दिनों से थोडा व्यस्त चल रहा था । इन्टरनेट पर काम नहीं कर पा रहा था । परन्तु मैं आपका ब्लॉग नियमित रूप से देखता रहता हूँ ।
मैंने एक वीडियो देखी । youtube पर देखी । आप भी ये  वीडियो देखना चाहें । तो कृपया इसी लाइन पर क्लिक करें
http://www.youtube.com/watch?v=L4thsq2m0ic
इस वीडियो को देखकर मैं बहुत ही आकर्षित हुआ । और मुझे लगा कि - अगर इस वीडियो को देखकर  इतना अच्छा फील कर रहा हूँ ।  तो अगर यह रियल में अनुभव करूँ । तो शायद इस दुनियाँ में इससे ज्यादा आनन्दित कुछ नहीं होगा ।
मैं आपसे यह जानना चाहता हूँ कि जो इस वीडियो में दिखाया गया हैं । वो क्या सच में होता है ? अगर यह सच में होता है । तो कृपया करके आप विस्तार से समझायें । मेरा कहने का मतलब हैं कि - अंतर की यात्रा के बारे में थोडा डिटेल में समझायें । यानि जब हम ध्यान में बैठते हैं । तो शुरू से अंत तक क्या क्या होता है ?

अगर आपने अपने  ब्लॉग में पहले से बताया हुआ है । तो मुझे कृपया उसका लिंक दे दीजिये । मुझे आपके उत्तर का इंतज़ार रहेगा ! कृपया उतर ब्लॉग में प्रकाशित करें । धन्यवाद ।  राज गुजरात से ।
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प्रिय राजीव जी ! नमस्कार ।
ये मौत की हंडिया दरअसल मैंने भी देखी है । अपने बचपन में । मैं 2 महीने की छुट्टियों में नानी के घर विष्णु गार्डन । दिल्ली में रहने गया था । वही एक दिन छत पर । मैंने शाम को सूरज ढलने के बाद । लेकिन कुछ प्रकाश अवश्य था । तब छत पर देखा था । इस हंडिया में छेद थे । जिससे आग नजर आ रही थी । और वो 


घूमती हुई एक दिशा की तरफ जा रही थी । तब मेरी उमृ शायद 7-8 साल की ही होगी । इस बारे में जब मैंने अपनी नानी को बताया । तो उन्होंने मुझे डाँटा । और कहा कि - मुझे उस तरफ नहीं देखना चाहिये । मैं इस बात को मानता हूँ । क्योंकि मैंने उसे देखा है । अशोक दिल्ली से ।
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- किसी भी ध्यान अवस्था या इस तरह के अलौकिक अनुभव मुख्यतः 3 प्रकार से होते हैं । ये तीनों वास्तव में हैं तो उसी supreme power से ही । पर कृमशः नीचे की स्थितियों में इनका तरीका बदल जाता है । जैसा कि आपने कहा - विस्तार से उत्तर दूँ । सच तो ये है कि अलौकिकता के किसी भी विषय पर मेरे जैसा इंसान यदि लिखेगा । तो पूरा एक मोटा ग्रन्थ ही लिख जायेगा । रामायण बाइबिल गुरु ग्रन्थ साहब और कुरआन आदि से भी बङा । इसलिये संक्षेप में सार सार और सूत्र कहकर उसकी थोङी सी व्याख्या ही हो पाती है ।
तो अगर यह रियल में अनुभव करूँ । तो शायद इस दुनियाँ में इससे ज्यादा आनन्दित कुछ नहीं होगा - अब मुझे वह बात तो याद नहीं आ रही । पर ऐसी ही - अगर या यदि ? आपने पहले भी लगा कर मुझे बर्रैया लगा दीं थी ।


तुलसी रामायण में ही लिखा है - नाम रूप दोऊ अकथ कहानी । समझत सुखद न जात बखानी ।
इसका मतलब समझाऊँ आपको - परमात्मा का वह आकाश महा आकाश में स्वतः और निरन्तर झंकृत होता नाम । जिसे कृमशः नीचे मनुष्य से 1 सोहं ( स्वांस या चेतन धारा । अन्दर देखना । दुनियाँ के परदे से अतिरिक्त भी अदृश्य को देखना  ) 2 निरंकार ( आकाशीय स्थिति का आनन्द । पक्षी की तरह उङना ) 3 रंरकार ( चेतन शक्ति और माया । यानी प्रकृति के विभिन्न खेल देखना । साक्षी होना ) 4 बृह्माण्ड की चोटी ( सुन्न घाटी । महासुन्न मैदान आदि के रोमांचक अनुभव ) 5 सचखण्ड ( अनुपम दिव्य सुगन्ध । और विभिन्न आत्मिक अनुभव । आत्मिक शब्द पर गौर करें । 


इससे नीचे के अनुभव जीव आत्मिक थे ) 6 फ़िर इससे ऊपर बहुत सी आनन्ददायी स्थितियाँ हैं । इनके बीच में भी बहुत सी स्थितियाँ हैं । जो छोटे लेख में बताना संभव नहीं ।
तो ये था । निर्वाणी अजपा आकाशीय नाम का कमाल । जो दोहे में कहा गया है । अब जैसा कि नानक कबीर आदि ने कहा है - शब्द ई धरती शब्द अकाशा । शब्द इ शब्द हुआ प्रकाशा । यानी इसी शब्द की सत्ता से इस सारी रचना का निर्माण हुआ है । नानक ने कहा है - बोदा नशा शराब का उतर जाये परभात । नाम खुमारी नानका चढी रहे दिन रात । मतलब ये सहज योग है । सहज समाधि । एक बार मिल जाने पर ये खुद ब खुद अक्सर होती ही रहती है । पहले तो आवै नहीं । और आवै तो जावै नहीं । बस ये सहज समाधि आती जरा देर से । और प्रयास से

है ।
अब नाम की बात मैंने स्पष्ट कर दी । अब रूप ? की बात समझें । नाम की जिस स्थिति में साधक की पहुँच हो गयी । वहाँ का रूप ( स्थिति ) उसे दर्शनीय होगा । लेकिन तुलसी कहते हैं - ये अकथ ( यानी कही न जा सके ) स्थिति है । इसलिये समझने में सुखद है । बखान करना बङा मुश्किल है । इस स्थिति को राजीव बाबा ने ऐसे कहा है - रूप तेरा मस्ताना । प्यार मेरा दीवाना । भूल कोई हमसे ना हो जाये ।
दरअसल प्रत्येक साधक की इस अगम अपार में इतनी स्थितियाँ बनती हैं कि - वर्णन करना मुश्किल है । दूसरे एक महत्वपूर्ण बात और भी है । सन्तों ने जान बूझ कर भी अधिक वर्णन नहीं किया है । क्योंकि तब साधक के मन में धारणा बन जायेगी । अब ऐसा ही मेरे साथ भी होगा । इससे उसके योग में प्रगति के बजाय बाधा अधिक आयेगी । क्योंकि हो सकता है । उसके संस्कार अधिक निर्मल और भक्तिमय हों । तब वह किसी स्थिति को राकेट की भांति सूँऽऽऽऽ करता हुआ पार हो सकता है । इसलिये सन्त धारणा बनाने से बचे हैं ।
अब आईये । फ़िर ऊपर की बात पर आते हैं । 1 विभिन्न मंत्र साधक मंत्र जप आदि में आवेश के बाद ऐसी किसी भी स्थिति का अनुभव करते हैं । वह अधिक स्थूल और कच्ची स्थिति कच्चा ज्ञान माना जाता है । इसमें शरीर में कंपन । शरीर में वेग से धारायें सी दौङना । कोई गोली कंचा टायप का बाडी में घूमते हुये अनुभव होना । भौंहों में अंटा लगा सा महसूस होना । भूत प्रेत जिन्न चुङैल डाकिनी शाकिनी कर्ण 


पिशाचिनी वेताल या तांत्रिक मांत्रिक लोगों का दिखाई देना आदि आदि कुछ भी हो सकता है । इसके पीछे बिज्ञान यह होगा । उस अनुष्ठान के दौरान साधक का क्या matter बना । तब पर्यावरण क्या था ? यानी आपने जगह बाँधी । कोई सेफ़्टी की या नहीं ? क्रिया विधिवत वेद या शास्त्रोक्त ढंग से की । या मनमाने तरीके से । या फ़िर उल्लू के ठप्पे स्टायल में मूढता से । मंत्र और मिलती जुलती अन्य साधनायें लगभग ऐसे ही अनुभव देती हैं ।
2 कुण्डलिनी यानी मायावती भाभी के जलवे । वही मेरी अष्टांगी डार्लिंग का खेल । जादू । इसको दूसरे शब्दों में द्वैत योग ज्ञान भी कहते हैं । इसमें तो इतने लफ़ङे हैं । घनचक्कर हैं कि आदमी पागल ही हो जाता है । संसार में जितने भी बाबा दिखते हैं । इसी का झाङन पोंछन करके हुआ फ़ेंकन समेटते रहते हैं ।

और वो भी आम लोगों के लिये बङा दैवीय बङा चमत्कारी होता है ।
लेकिन इसके बङे स्तर के योगी गम्भीर होते हैं । आम पब्लिक के सम्पर्क में नहीं आते । गिने चुने शिष्य होते हैं । जिनसे कङा बरताव और कङे अनुशासन का व्यवहार किया जाता है । इसके सबसे टाप मास्टर श्रीकृष्ण बाबा । और फ़िर नीचे बहुत से गोरख । मंछदर । सौभरि । तैलंग आदि आदि कोई गिनती ही नहीं है ।
3 सबसे टाप यानी supreme power यानी अद्वैत । इससे  तो मेरा पूरे ब्लाग ही भरे पङे है । इसलिये आईये । आपके मूल प्रश्न पर बात करते हैं ।
अगर आप ओशो बाबा के सतसंग के शौकीन हैं । तो कृपया इस लाइन पर क्लिक करें ।
http://oshosatsang.org/
अब अगर मैं अपने स्तर से बात करूँ । तो यही कहूँगा - OH GOD ! ऐसा किसी के साथ न हो । क्योंकि द्वैत और अद्वैत का संगम बहुत ही विलक्षण केसों में हो पाता है । और इसमें बहुत डरावनी स्थितियाँ बन जाती हैं । लेकिन यदि साधक इनको झेलता हुआ जीवित बच गया । तो फ़िर वह बहुत मजबूत भी हो जाता है । इसलिये प्रायः मेरी जैसी स्थितियाँ बहुत कम नगण्य देखने में आती हैं । अधिकांश लोगों की मौत हो जाती है ।
प्रायः सभी का ध्यान किसी एक तरीके से शुरू नहीं होता । शुरूआत बङी कठिन और उबाऊ होती है । कभी बहुत 


देर बैठने पर कुछ सेकेण्ड के लिये दूधिया प्रकाश दीख गया । कभी कभी निचले आसमान दिख गये । और इनके साथ ही सबसे प्रारम्भ की गन्दी सी लोकेशन वाली पहाङी । उस पर मंडराते चील कौवे जैसे पक्षी अक्सर दिखते हैं । ये ठीक वैसा ही दृश्य होता है । जैसे शहर से बाहर कोई गन्दे नाले के पास पहाङी वगैरह देख रहे हों । इसी स्थिति में कभी कभी गुरु का प्रकार दूसरा होने पर ये न दिख कर एक प्रकाश shade fade जैसी स्थिति में उसी प्रकाश के मध्य विभिन्न फ़ूल पत्ती दिखते हैं । ध्यान रहे । ऐसे अनुभव होने पर समझ लें । आपका गुरु अधिकतम त्राटक स्तर का है । और ज्ञान बिलकुल  A B C D स्तर का है । अगर इतना भी नहीं होता । तो वो गुरु है । या कचरे का डिब्बा ? आप खुद ही समझ लेना ।
इससे कुछ बङे स्तर के गुरु होने पर ये सब झंझट नहीं होगा । आप लगभग सीधे ही पहले आसमान में होंगे । सच्चे गुरु का प्रमाण पत्र रूपी दीक्षा ( जो अदृश्य मोहर के रूप में लगी होती हैं ) आपके पास होगी । और आपको सुन्दर भूमियाँ अपने संयम ( यानी ध्यान में न चौंकना । और निष्क्रिय से शान्त रहना ) अनुसार समय तक देखने को मिलेंगी । यहीं से अन्दर की रामलीला शुरू हो जाती है । यानी ज्यादातर बहुत छोटे स्तर के दिव्य लोग मिलना शुरू हो जाते हैं । रामलीला मैंने इसलिये कहा । क्योंकि उनके सिल्की टायप आरेंज कलर के वस्त्र लगभग उसी तरह के होते हैं । जैसे धार्मिक सीरियलों में वस्त्र

होते हैं । बहुत से पागल इन्हीं को - प्रभु प्रभु ! कह कर हाथ पांव जोङने लगते हैं । जबकि ये अंतर लोकों की पब्लिक जैसे होते हैं । यहाँ बेहद निम्न स्तर की दिव्य युवतियाँ भी मिलती हैं । जो साधारण स्तर के साधकों में कोई रुचि नहीं लेती ।
लेकिन आपका स्टेयरिंग भावना भाव अनुसार थोङा दाँये बाँये घूम गया । तो आपकी गाङी तांत्रिक लोकों प्रेत लोकों अंधेरे लोकों में भी जा सकती हैं । इनमें तांत्रिक लोक अपने नाम के अनुसार ही रहस्यमय विचित्र बनाबट के और खतरनाक लोगों से भरे होते हैं ।
- क्योंकि पेज बङा हो रहा है । आगे का विवरण इसी लेख के दूसरे भाग में । 

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सत्यसाहिब जी सहजसमाधि, राजयोग की प्रतिष्ठित संस्था सहज समाधि आश्रम बसेरा कालोनी, छटीकरा, वृन्दावन (उ. प्र) वाटस एप्प 82185 31326