11 मार्च 2012

चिंताहरण आश्रम से

राज नीति बिनु धन बिनु धर्मा । हरिहि समर्पे बिनु सतकर्मा ।
बिद्या बिनु बिबेक उपजाए । श्रम फल पढ़े किए अरु पाए ।
नवनि नीच कै अति दुखदाई । जिमि अंकुस धनु उरग बिलाई ।
भयदायक खल कै प्रिय बानी । जिमि अकाल के कुसुम भवानी ।
निगम नेति सिव ध्यान न पावा । माया मृग पाछे सो धावा ।
भृकुटि बिलास सृष्टि लय होई । सपनेहु संकट परइ कि सोई ।
इमि कुपंथ पग देत खगेसा । रह न तेज बुधि बल लेसा ।
कोमल चित अति दीनदयाला । कारन बिनु रघुनाथ कृपाला ।
सुनहु उमा ते लोग अभागी । हरि तजि होहिं बिषय अनुरागी ।
जाति हीन अघ जन्म महि मुक्त कीन्हि असि नारि । महामंद मन सुख चहसि ऐसे प्रभुहि बिसारि ।
पानि जोरि आगे भइ ठाढ़ी । प्रभुहि बिलोकि प्रीति अति बाढ़ी ।
केहि बिधि अस्तुति करौ तुम्हारी । अधम जाति मैं जड़मति भारी ।
अधम ते अधम अधम अति नारी । तिन्ह मह मैं मतिमंद अघारी ।
कह रघुपति सुनु भामिनि बाता । मानउ एक भगति कर नाता ।
जाति पाँति कुल धर्म बड़ाई । धन बल परिजन गुन चतुराई ।
भगति हीन नर सोहइ कैसा । बिनु जल बारिद देखिअ जैसा ।
नवधा भगति कहउ तोहि पाही । सावधान सुनु धरु मन माही । ?
प्रथम भगति संतन्ह कर संगा । दूसरि रति मम कथा प्रसंगा ।
गुर पद पंकज सेवा तीसरि भगति अमान ।   चौथि भगति मम गुन गन करइ कपट तजि गान ।
मंत्र जाप मम दृढ़ बिस्वासा । पंचम भजन सो बेद प्रकासा ।
छठ दम सील बिरति बहु करमा । निरत निरंतर सज्जन धरमा ।
सातव सम मोहि मय जग देखा । मोते संत अधिक करि लेखा ।
आठव जथा लाभ संतोषा । सपनेहु नहिं देखइ पर दोषा ।
नवम सरल सब सन छल हीना । मम भरोस हिय हरष न दीना ।
नव महु एकउ जिन्ह के होई । नारि पुरुष सचराचर कोई ।
सोइ अतिसय प्रिय भामिनि मोरे । सकल प्रकार भगति दृढ़ तोरे ।
जोगि बृंद दुरलभ गति जोई । तो कहु आजु सुलभ भइ सोई ।
मम दरसन फल परम अनूपा । जीव पाव निज सहज सरूपा । ?
डा. संजय चिंताहरण आश्रम से दीक्षा प्राप्ति के बाद लौटकर । इसका विवरण अलग से लेख में प्रकाशित होगा । आपका बहुत बहुत आभार संजय जी ।

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