11 जनवरी 2012

कबिरा संगति साधु की जो करि जाने कोय

कबीरा संगत साधु की ।  नित प्रति कीजे जाय । दुरमति दूर बहावसी ।  देशी सुमति बताय । 
एक घड़ी आधी घड़ी ।  आधी में पुनि आध । कबीर संगत साधु की ।  कटे कोटि अपराध । 

कबिरा संगति साधु की ।  जो करि जाने कोय । सकल बिरछ चन्दन भये ।  बांस न चन्दन होय । 
मन दिया कहुँ और ही ।  तन साधुन के संग । कह कबीर कारी गजी ।  कैसे लागे रंग ।
साधुन के सतसंग से ।  थर  थर काँपे देह । कबहुं भाव कुभाव ते ।  जनि मिटि जाय सनेह । 
साखी शब्द बहुते सुना ।  मिटा न मन का दाग । संगति सो सुधरा नहीं ।  ताका बड़ा अभाग । 
साध संग अन्तर पड़े ।  यह मति कबहु न होय । कहैं कबीर तिहु लोक में ।  सुखी न देखा कोय । 
गिरिये परबत सिखर ते ।  परिये धरिन मंझार । मूरख मित्र न कीजिये ।  बूड़ो काली धार । 
कह कबीर गुरु  देश में ।  बसि जावे जो कोय । कागा ते हंसा बने ।  जाति बरन कुल खोय । 
भुवंगम बास न बेधई ।  चन्दन दोष न लाय । सब अंग तो विष सों भरा ।  अमृत कहाँ समाय । 
तोहि पीर जो प्रेम की ।  पाका सेती खेल । काची सरसों पेरि के ।  खरी भया न तेल । 
काचा सेती मति मिलै ।  पाका सेती बान । काचा सेती मिलत ही ।  है तन धन की हान । 
कोयला भी हो ऊजला ।  जरि बरि है जो सेव । मूरख होय न ऊजला ।  ज्यों कालर का खेत ।
मूरख को समुझावते ।   ज्ञान गाँठि का जाय । कोयला होय न ऊजला ।  सौ मन साबुन लाय । 
ज्ञानी को ज्ञानी मिले ।  रस की लूटम लूट । ज्ञानी को आनी मिलै ।  हौवे माथा कूट । 
साखी शब्द बहुतक सुना ।  मिटा न मन का मोह । पारस तक पहुँचा नहीं ।  रहा लोह का लोह । 
ब्राह्मण केरी बेटिया ।  मांस शराब न खाय । संगति भई कलाल की ।  मद बिना रहा न जाए । 
जीवन जीवन रात मद ।  अविचल रहे न कोय । जु दिन जाय सत्संग में ।  जीवन का फल सोय ।
दाग जु लागा नील का ।  सौ मन साबुन धोय । कोटि जतन परमोधिये ।  कागा हंस न होय । 
जो छोड़े तो आंधरा ।  खाये तो मरि जाय । ऐसे संग छछून्दरी ।  दोऊ भाँति पछिताय । 

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सत्यसाहिब जी सहजसमाधि, राजयोग की प्रतिष्ठित संस्था सहज समाधि आश्रम बसेरा कालोनी, छटीकरा, वृन्दावन (उ. प्र) वाटस एप्प 82185 31326