03 जुलाई 2011

अल्लाह शाहरग से भी नजदीक है - कुरआन शरीफ़

घर महि घरु देखाइ देह सो सतगुरु पुरुखु सुजाणु । पंच सबद धुनिकार धुनि तह बाजे सबदु नीसाणु ।
गुरु नानक साहब से किसी इंसान ने सवाल किया - महाराज जी ! पूर्ण गुरु की पहचान क्या है ? और वह क्या देता है ?
तब नानक साहब बोले - यह शरीर रूपी घर परमात्मा के मिलने का स्थान है । इस घर के अन्दर से उस परमात्मा के घर का रास्ता है । जहाँ कि हमें हमेशा ही रहना है । ये घर तो बस किराये का मकान है ।
इसलिये जो भी महात्मा इस शरीर रूपी घर के अन्दर उस मालिक का घर दिखाये । वही सतगुरु है ।
यह त्रिलोकी सृष्टि नाशवान है । फ़नाह होने वाली है । लेकिन सचखंड कभी नष्ट नहीं होता ।
ॐ तक की सृष्टि प्रलय में नष्ट हो जाती है । और महाप्रलय में " सोहं " तक का देश नष्ट हो जाता है । उसके परे । उससे ऊपर जो देश है । उसे सतलोक कहिये । या सचखंड कहिये । या रूह का मुकामे हक कहिये । वहाँ न प्रलय की पहुँच है । न महाप्रलय की । इसलिये सन्त सचखंड को ही अपना लक्ष्य मानते हैं ।

जब कोई सच्चे सतगुरु के पास जाता है । तो वह कहते हैं - बन्दे ! तेरे अन्दर 5 शब्द हैं । 5 कलमे या 5 नौबतें बज रहीं है ।  तू अपनी सुरति को उनके साथ लगा दे ।
उनमें एक चुम्बकीय कशिश और आकर्षण है । ये धुनें सहस्त्रदल कमल से शुरू होकर सचखण्ड में जाकर खत्म होती हैं ।
अतः सदगुरु कौन है ? इसका सम्बन्ध जाति धर्म देश आदि से नहीं जोङा जाता है । किसी भी शिष्य को ग्यान लेना है । मोक्ष का रास्ता लेना है । कबीर साहब मुसलमान जुलाहे से संबन्धित थे । और राजा वीरसिंह बघेल उनके शिष्य सेवक थे । रविदास ( रैदास जी ) चर्मकार ( चमार ) थे । और मेङते की रानी मीराबाई और क्षत्रिय राजा पीपा उनका शिष्य सेवक हुआ ।
इसलिये जो महात्मा इन पाँच शब्दों ( सार शब्द की अलग अलग मंजिल पर धुनें ) का मार्ग बताता है । दिखाता है । तुम्हें वहाँ पहुँचाने में सक्षम है । वही सदगुरु है ।

दीप लोअ पाताल तह खंड मंडल हैरानु । तार घोर बाजित्र तह साचि तखति सुलतानु ।
इस दुर्लभ मनुष्य शरीर के अन्दर अनेकों दीप पाताल पहाङ नदियाँ और करोंङो सूर्य चन्द्र हैं । बृह्म और पारबृह्म भी इसी शरीर के अन्दर है । और स्वयं परमात्मा भी इसके अन्दर है । इसलिये जो हमारा बन्द परदा खोलकर हमें अन्दर पहुँचा दे । वही कामिल मुर्शिद है ।
इस शरीर के अन्दर से बङी मीठी मीठी और प्यारी से प्यारी रागिनी हो रही हैं । जो महात्मा इन रुहानी मंडलो पर गये हैं । चाहे वे हिन्दू हों । चाहे मुसलमान । सबने उनका वर्णन किया है ।
मौलवी रूम साहब कहते हैं - औलिया अल्लाह को वह राग बङा प्यारा लगता है ।
सन्त शम्स तबरेज ने भी कहा है -

बाँगे अजब अज आसमाँ दर मी रसद हर साअते । मे नशनबद आँ बाँगे रा इल्ला कि साहिब दौलते ।
मैं उस अजीव बाँग को हर वक्त ही सुनता हूँ । और बङे भाग्यशाली लोगों के सिवाय उसे कोई और नहीं सुन सकता ।
मौलाना रूम साहिब कहते हैं -
गुफ़्त पैगम्बर कि आवाजे खुदा । मी रसद दर गोशे मन हमचू सदा ।
हजरत मुहम्मद साहब भी कहते हैं कि खुदा की आवाज हर वक्त मेरे कानों ( जब किसी साधक को अभ्यास द्वारा धुन रूपी शब्द नाम प्रकट हो जाता है । फ़िर वो हर समय सुनायी देता है ) में आ रही है । इस पर कुछ लोगों ने कहा । फ़िर वह हमें क्यों नहीं सुनायी देती ?
तब मुहम्मद साहब ने कहा -
मुहर बर गोशे शूमा बनिहाद हक । ता बा आवाजे खुदा नारद सबक ।
खुदा ने तुम्हारे कानों पर मुहर लगाकर उनको बन्द कर रखा है । इसके लिये किसी कामिल मुर्शिद की शरण लो । जो तुम्हारे कानों की मुहर खोल सके ।
सन्त शम्स तबरेज साहब कहते हैं -
बहफ़्तम फ़लक नौबत पंज याबी । चो खैमा ज शश जहत बरकंदह बाशी ।

तेरा आँखों से नीचे तक का यह शरीर कब्र है । इन छह चक्रों तक नाम नहीं केवल लफ़्ज है । नाम तो आँखों से ऊपर है । जो नाम मुक्ति प्रदान करता है । वह सिर्फ़ आँखों से ऊपर है । जब तू इन छह मंजिलों ( शरीर के छह चक्र ) को पारकर सातवीं मंजिल पर पहुँचेगा । तो वहाँ से पाँच नौबतें ( धुनें ) शुरू हो जायेंगी । और वहाँ से लेकर इस रूह के मुकामे हक तक वे पाँच नौबतें मुकम्मल ( पूर्ण ) हो जायेंगी ।
सन्त शम्स तबरेज ने कहा है -
आँ बादशाहे आजम दरे बस्तह बूद मुहकम ।
अल्लाह ने हरेक इंसान की आँखों के पीछे परदा डालकर उसे बाहर निकाला हुआ है ।
और वह परदा खुलता किस प्रकार है ? ये भी बताते हैं -
पोशीदा दलके आदम यानी कि बरदर आमद ।
वह अकाल पुरुष स्वयँ मुर्शिद ( गुरु ) बनकर परदा खोलने आता है । और वह कहता है -
खामोश पंज नौबत बिशनौ ज आसमाने ।
तू चुपचाप शान्त होकर भीतर की तरफ़ तवज्जह दे । तेरे अन्दर ही पाँच नौबतें बज रही हैं ।
काँ आसमाने बेरूँ जाँ हफ़्तो ई शश आमद ।
हे बन्दे ! जब तू इन पाँच इन्द्रियों से ऊपर उठेगा । कान नाक मुँह आदि शरीर के नौ द्वारों को छोङेगा । तो तुझे वे नौबतें जो घट आकाश में हरदम हो रही हैं । खुद सुनायी देंगी । नौ द्वारों से ऊपर अंतर में एक ही रास्ता है । और हम अभी अग्यान में छह चक्रों की कब्र में बैठे हुये हैं । हमारे अलग अलग लफ़्ज हैं । अलग अलग बोलियाँ ( भाषायें ) हैं ।
लेकिन अन्दर जाओ । तो वहाँ न कोई बोली है । न कोई लफ़्ज है । वहाँ का कानून अलिखित है । वहाँ की भाषा बोली नहीं जा सकती । इसलिये जो भी कामिल फ़कीर सन्त अन्दर गये हैं । चाहे वे किसी भी कौम के क्यों न रहे हों । उन सबका मार्ग एक ही है । वह कुल मालिक वाहिद उल ला शरीक सबके अन्दर है ।
बाहर न किसी को वह कभी मिला है । और न कभी मिलेगा । हमारी आध्यात्मिक पुस्तकें भी यही बात बयान करती हैं ।
कुरआन शरीफ़ में लिखा है - अल्लाह शाहरग से भी नजदीक है ।
और हम उसे ढूँढते हैं । मन्दिर मस्जिद गिरजाघर और गुरुद्वारों में । अलग अलग धर्म स्थानों में । अगर कोई सच्ची मस्जिद है । तो वह खुद हमारा यह वजूद ( शरीर ) ही है । जिसमें अल्लाह मिलता है । और वह हमारे अन्दर ही है । सच्चा गुरुद्वारा । सच्चा मन्दिर । सच्चा गिरजाघर हमारे अन्दर है । वहाँ हर वक्त बाँग ( पूजा ) हो रही है । जो कभी बन्द नहीं होती । बस मरने पर ही बन्द होती है ।

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