30 मई 2011

समय बहुत ही कम रहा है

मैं तुममें कुछ बीज बो रहा हूँ । तुम्हें कोई शब्द या सिद्धांत नहीं दे रहा । जब मैं चला जाऊँ । तो कृपया मुझे एक कवि की तरह याद करना । एक दार्शनिक की तरह नहीं । कविता को तुम्हें एक अलग ढंग से समझना पड़ता है । कविता को तुम्हें प्रेम करना होता है । उसकी व्याख्या नहीं करनी होती । कविता को तुम्हें कई बार गुनना पड़ता है । ताकि वह तुम्हारे खून के साथ, हड्डी मांस मज्जा के साथ घुलमिल जाए । कविता के साथ तो तुम बस मौन बैठ जाओ । ताकि वह तुम्हारे भीतर एक जीवंत शक्ति बन जाए । मुझे एक कवि की तरह याद रखना । और हाँ, मैं कोई शब्दों में कविता नहीं लिख रहा हूँ । मैं उसके लिए एक जीवंत माध्यम का उपयोग कर रहा हूँ - ओशो ।
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किसी भी मित्र में अंगुलिमाल को या उसके अतीत को मत देखना । अन्यथा उनके भीतर हम बीज रूप में उदय होते बोधिसत्व अंगुलिमाल को कभी न देख सकेंगे । और एक व्यक्ति को जो धर्म के मार्ग पर चल पड़ा है । उसे भारी हानि पहुंचा सकते हैं - अस्तित्व के प्रति । लाखों जन्मों की श्रंखला में ये असंभव है कि हम कभी न कभी गहन अन्धकार से न घिर गये हों । या घिरे हों । वही छटपटाहट ही तो प्रकाश की यात्रा को प्रेरित करती हैं । तो जो थोड़ा आगे निकल गये हों । या आगे आगे चल रहे हों । हम सभी का मार्गदर्शन करें । हमारी मूर्छा में की गयी भूलों को मूर्तिकार की तरह गढ़ें ।
प्रार्थना - यहाँ कोई जुदा नहीं एक दूजे से ।
बहते है प्राणों के रथ पर । एक दूजे में लम्हा लम्हा से ।
ये जो अभी अभी पिया था तुमने ।
अब वो जाम..हमारे अधरों पर है ।
करके तृप्त हमें कुछ पल ।
फिर चला..पवन के रथ पर है ।
मिटटी की तुम बात न करना । कुछ पल का धोखा है ।
जिसने सदियों से इस राही के रथ को रोका है ।
संतो की करुणा ही एक मात्र सरोपा ( प्रसाद ) है ।
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प्रेम तब निर्दोष होता है । जब उसमें कोई वजह नहीं होती । प्रेम निर्दोष होता है । जब यह और कुछ नहीं । बस ऊर्जा का बांटना होता है । तुम्हारे पास बहुत अधिक है । इसलिए तुम बांटते हो । तुम बांटना चाहते हो । और जिसके साथ भी तुम बांटते हो । तुम उसके प्रति अनुग्रह महसूस करते हो । क्योंकि तुम बादल की तरह थे । बरसात के पानी से बहुत भरे हुए । और किसी ने तुम्हें हल्का होने में मदद की । या तुम फूल जैसे थे । खुशबू से भरे हुए । और हवा आकर तुम्हें हल्का कर देती है । या तुम्हारे पास गाने के लिए गीत है । और किसी ने ध्यान पूर्वक सुना । इतना ध्यान पूर्वक कि तुम्हें गाने का अवसर दिया । इसलिए जो कोई भी तुम्हें प्रेम में बहने में मदद करता है । उसके प्रति अनुग्रह आता है । आत्मसात करने की वह भावना । अपनी जीवन शैली बन जाने दो । बिना कुछ लेने की बात सोचे देने की काबिलियत । बेशर्त देने की क्षमता । तुम बस देते हो । क्योंकि तुम्हारे पास अधिकता है ।
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8 सितम्बर 1968 बड़ौदा । भारत । - क्या आप राजनीति में सक्रिय भूमिका निभाना चाहते हैं ?
आचार्य श्री ने कहा - मेरा कैसा भी, कभी भी, कोई इरादा राजनीति में भाग लेने का नहीं है । लेकिन मुल्क की जिन्दगी में भाग लेने का है । और उसमें राजनीति भी है । शिक्षा भी है । धर्म भी है । अर्थशास्त्र और समाजशास्त्र भी है । राजनीति में भाग लेने की मेरी कोई रूचि नहीं है । लेकिन मुल्क की जिन्दगी को जहां जहां राजनीति छूती है । वहां उससे भागकर और डरने वाला मेरा मन नहीं है । जो उसमें भी जरूरी लगे । हमें उसकी फिक्र करनी है । पूरे देश में सामाजिक क्रांति की भूमिका बनाने के लिये मैं एक यूथ फोर्स खड़ा करना चाहता हूँ । जो इस क्रांति की मशाल को गांव गांव, शहर शहर में ले जाये । दूसरा मैं प्रत्येक नगर, गांव गांव में छोटे मोटे आश्रम या ध्यान केंद्र खड़ा करना चाहता हूं । जो ध्यान के सतत प्रयोग करें । इसके लिए कुछ सन्यासियों का एक नया आर्डर खड़ा करने का ख़याल है । जो किसी धर्म का न होगा । न हिन्दू होगा । न मुसलमान होगा । न इसाई । न जैन होगा । वह केवल धार्मिक होगा । धर्म क्या हैं ? वह बस इसी की खबर भर देगा । और मेरी दृष्टि में धर्म का अर्थ है । जो सारे जीवन को छू ले । उसमें शिक्षा भी है । राजनीति भी है । दाम्पत्य भी है । सेक्स भी है । धर्म पूरे जीवन की फिलासफी है । मैं चाहता हूँ । संन्यासी पूरे मुल्क के गांव गांव में, एक हवा पैदा करें । जिससे एक मूवमेंट खड़ा किया जाये ।
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भगवान श्री कहते है - ध्यान है । तो सब कुछ है । ध्यान नहीं । तो कुछ भी नहीं । उपासना बहुमूल्य है - ओशो ।
इसलिये उपासना कि तू कहीं न भूल जाय ।
ज्ञान कर्म से विरक्त । व्यर्थ ज्ञान कर्म त्यक्त ।
ज्ञान कर्म बंध में । उपासना सबल सशक्त ।
जीवन संग्राम में । पैर कहीं डगमगाय ।
इसलिये उपासना कि, तू न कहीं भूल जाय
लक्ष्य ज्ञान का सुदूर । प्रगतिशील पुरुष शूर ।
बढ़ता है, किन्तु ह्रदय । होता जब चूर चूर ।
मात्र एक स्मरण शेष । मुक्ति का चरम उपाय ।
इसलिये उपासना कि तू न कहीं भूल जाय
ज्ञान हो न कर्म हीन । कर्म न हो खिन्न दीन ।
हो न जाय ज्ञान का । प्रकाश कहीं मलिन क्षीण ।
नित्य चिर नवीन रहे । अमर ज्योति जगमगाय ।
इसलिये उपासना कि तू न कहीं भूल जाय ।
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हम भयभीत हैं । क्योकि हम मूर्च्छा में हैं । सारी मूर्च्छा शरीर से पैदा होती है । मूर्च्छा ही भय का मूल कारण हैं । मूर्च्छा है । तो भय है । यदि मूर्च्छा नही । तो भय नही है । सोया हुआ डरता है । जागने वाला नहीं डरता । शरीर दर्शन के कारण ही हम माने बैठे है कि शरीर छूट गया । तो सब कुछ छूट गया । शरीर के प्रति इतनी प्रगाढ़ आस्था के कारण ही मृत्यु का भय इतना डराता हैं । भय ही होता है । उसे निकाल दो ।
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मेरे प्यारे आत्मन ! तुम अपना साथ छोड़कर उस पदचिन्ह पर चल पड़े । जहाँ आगे पदचिन्ह ठहर गये । और तुम भी वही आकर रुक गये । वो झुक रहा है । तो तुम भी झुक गये । जैसे जैसे अपने चेतन से दूर होते गये । और अंहकार । अन्धकार में फंस गये । तुम पूजा में फंस गये । तुमने थोथी बातो को सुनकर । उसको ज्ञान की पोटली बना ली । और मंदिर मस्जिदो में भटकते रहे । मोक्ष को पाने के लिए । और अपनी राहों से चूक गये । समय बहुत ही कम रहा है । यमराज तैयार ही समझो ।
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कहीं पर गलतफहमी हो गई । तो कहीं गलतफहमी के शिकार हो गये । लेकिन सबकी अपनी अपनी सोच है । कुल मिलाकर इतना ही जाना कि तुम्हारे भीतर जो साक्षी है । वही तुम्हारा सच्चा मित्र है । बाकी सब पराये हैं ।
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17 अक्टूबर, 1985 उत्तरी कैरोलीना । शार्लोट एअरपोर्ट । जैसे ही लियर जेट 40 उत्तरी कैरोलीना हवाई अड्डे पर ईधन के लिये रुका । वैसे ही लगभग 20-30 रायफलें और पिस्तौलें ताने हुये ला इन्फोर्समेंट अधिकारियों और जवानों ने उन्हें चारों ओर से घेर लिया । उसमें मां चेतना, मां निरूपा और मां मुक्ति थीं । उन सभी को बिना कारण बताये हिरासत में ले लिया गया । हवाई अड्डे पर स्वागत के लिये आई हास्या और प्रसाद यह सब देखकर अवाक एवं दंग थे । वे लोग भारी भरकम काऊ ब्वाय जूतों को चरमराते हुये वायुयान पर इस प्रकार टूट पड़े थे । जैसे कोई माफिया गिरोह अपने दुश्मनों पर आक्रमण करता है । उनके बर्बर आदेशानुसार उन सभी को अपने दोनों हांथो को ऊपर उठाना पड़ा । वायुयान से सभी यात्रियों को नीचे उतरने का आदेश दिया गया । सभी लोंगों को पायलट सहित गिरफ्तार कर लिया गया । उन सभी को वे लोग क्रूरता पूर्वक धकेलते हुये गाड़ियों के पार्किंग स्थल तक ले आये । सभी की तलाशी लेकर उन्हें हथकड़ियां लगा दी गईं । न उन लोगों ने अपना परिचय दिया । और न गिरफ्तार करने का कारण बतलाया । किसी ने कुछ पूछने का प्रयास भी किया । तो उन्होंने गाली देकर डांटते हुये खामोश रहने को कहा । और गोली से उड़ाने की धमकी दी । ऐसा लग रहा था कि ये लोग तो आतंकवादी हैं । या दुर्दांत लुटेरे । सभी लोगों को एक उजाड़ इमारत में रखा गया । और पहरे पर बंदूकें लिये सभी के सर पर सवार एक काउ ब्वाय टाइप गुंडा खड़ा रहा । और अगले वायुयान की आवाज़ सुनकर वे हथियार लिये फिर हवाई अड्डे के अन्दर चले गये । लिपर 35 विमान से उतरकर जब भगवान श्री, विवेक, देवराज और जयेश ने टर्मिनल इमारत में प्रवेश किया । तो उन्हें चारों ओर से घेरे हथियारबंद लोगों ने सभी के हाथ पीछे कर उन्हें भी हथकड़ियां पहना दीं । हाथ पीछे कर हथकडियां लगाया जाना बहुत पीड़ा युक्त था । पर भगवान श्री अविचलित, मुस्कुराते हुये पूरी अमानवीय कार्यवाही साक्षी भाव से देख रहे थे । 
फिर अगले दिन ओरेगान, कैलिफोर्निया, फ़्रांस और नीदरलैंड के पत्रकार भगवान श्री से जेल में उनका साक्षात्कार लेने के लिये आये । अटलांटा से पूरी टेलिविज़न टीम भगवान श्री से साक्षात्कार लेकर उसे टी.वी. पर प्रसारित करना चाहती थी । पर शेरिफ किड ने उनके डायरेक्टर से कहा - मुझे अफ़सोस है कि किसी को भगवान श्री का साक्षात्कार लेने की इजाजत नहीं हैं । मैं सरकारी आदेश के कारण विवश हूं । आखिर कई बार वाशिंगटन फोन खटखटाने के बाद शाम वह साक्षात्कार की आज्ञा लेकर ही लौटे । जब भगवान श्री ने कैदियों वाली हरी वर्दी पहने साक्षात्कार कक्ष में प्रवेश किया । तो सभी ने खड़े होकर उनका स्वागत किया । भगवान श्री के कुर्सी पर बैठते ही एक दो औपचारिक प्रश्नों के बाद उन्होंने पूंछा - भगवान श्री ! आपके साथ इस जेल में किस प्रकार का व्यवहार किया जा रहा है ? 
भगवान श्री ने कहा - इस जेल ( मैक्लेंबर्ग कंट्री ) में शेरिफ किड और नर्स सैंडी कार्टर का व्यवहार बहुत आदर और प्रेम पूर्ण है । पर अमरीकी सरकार के मार्शलों द्वारा मेरे और मेरे साथियों के साथ न केवल दुर्व्यवहार किया गया । वरन उन लोगों ने हवाई जहाज से मुझसे उतरते ही बंदूको की नोंक के बल पर अपशब्द कहते हुये इस तरह घेरकर बंदी बनाया । जैसे हम लोग हत्यारे और डकैत हों । पूछने पर भी न तो उन्होंने अपना परिचय दिया । न ही अपना आईडेंटिटी कार्ड दिखलाया । और न गिरफ्तार करने की कोई वजह बतलाई । पहिले तो समझा कि शायद आतंकवादियों ने हम लोगों को किडनैप किया है । पर जब वे लोग मुझे हथकड़ी और वेड़ी के साथ मेरी कमर में जंजीर बांधने लगे । तो मैंने उनसे कहा - यदि आप लोग मुझे गिरफ्तार कर रहें हैं । तो पहले गिरफ्तारी का वारंट दिखाईये । पर वह लोग कुछ भी नहीं सुन रहे थे । वह लोग केवल आतंकित करने वाले अपशब्द सुना रहे थे । डा. देवराज मेरा पर्सनल डाक्टर है । उसने उन्हें बताया भी कि मैं पीठ दर्द डिस्क डिस्लोकेशन का मरीज़ हूँ । और मेरी कमर में जंजीर बांधना बहुत पीड़ायुक्त है । पर मार्शल लोगों ने कुछ सुना ही नहीं । हम सभी को रात भर लाकअप की गंदी होल्डिंग सेल में रखा गया । मुझे लोहे की ठंडी बेंच पर सोने के लिये कहा गया । जिससे मेरा पीठ दर्द भयंकर रूप से बढ़ गया । अमरीका जैसे सभ्य देश की पुलिस का यह फासिस्ट, हिटलर और मुसोलिनी के एजेंटो के व्यवहार से भी बर्बर व्यवहार था । और बढ़कर क्यों न हो ? तब से सभ्यता ने बहुत उन्नति की है । पहले हमले में सिर्फ हज़ारों लोग ही मारे जाते थे । अमरीकी प्रेसीडेंट ने तो कुछ सेकिंड में ही एक एटम बम द्वारा हिरोशिमा और नागासाकी में लाखो लोगो को मौत के घाट उतार दिया था । और उस रात वह बहुत गहरी नींद सोया था । अमरीकी मार्शल, अपने उसी प्रेसीडेंट का ही अनुगमन कर रहे हैं । 
भगवान श्री ने कहा - मैं अमरीका के लोगों से प्यार करता हूँ । अमरीकी प्रेस और मीडिया का मैं बहुत आदर करता हूं । जो व्यक्ति स्वतंत्रता और विचारों की स्वतंत्रता की पक्षधर है । मेरा विरोध तो अमेरिका की राजनीतिक व्यवस्था से है । जो एक ओर अपने को धर्म निरपेक्ष कहती है । और दूसरी ओर उसके कट्टर कैथोलिक प्रेसीडेंट चर्च के कुछ पादरियों के भड़काने पर बिना किसी अपराध के मुझे और मेरे साथियों को बर्वर तरीकों से गिरफ्तार करते हैं । और आप देखेंगें कि मैं कुछ ही दिनों में केस जीत कर फिर कम्यून लौटूंगा । 

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सत्यसाहिब जी सहजसमाधि, राजयोग की प्रतिष्ठित संस्था सहज समाधि आश्रम बसेरा कालोनी, छटीकरा, वृन्दावन (उ. प्र) वाटस एप्प 82185 31326