30 अप्रैल 2011

एक बच्चे का दर्द

लगभग दस साल के जिस बच्चे की यह बात है । वह मेरे ही परिवार का है । यह कोई आठ दिन पहले की बात है । जब मैं और मेरी बहन बैठे हुये बात कर रहे थे ।
शाम के लगभग 5 बजे का समय था । अचानक मेरा  12 वर्षीय बङा भांजा मोबायल फ़ोन लेकर आया । और बोला - मम्मी यह सुनो ?
उस मोबायल की दो आडियो क्लिप में मेरे छोटे भांजे द्वारा की हुयी रिकार्डिंग को सुनकर मेरी बहन का चेहरा फ़क रह गया । और मैं भी दंग ही रह गया । रिकार्डिंग जिस अन्दाज में की गयी थी । { नीचे की दोनों रिकार्डिंग सुनें । क्योंकि यह दूसरी साइट से कनेक्ट होकर सुनाई देती है । इसलिये आपके इंटरनेट कनेक्शन की स्पीड अनुसार कुछ सेकेंड बाद ही सुनाई देगी । }
उस हिसाब से उस बच्चे को तुरन्त बुलाकर इस बारे में बात करना या कुछ भी समझाना खतरे से खाली नहीं था । क्योंकि उस हालत में बच्चे को अपनी बात महत्वपूर्ण लगती । अपनी ही बात सही लगती । और उसकी वह भावना कमजोर होने के बजाय और पक्की  हो जाती ।
 और कुछ भी न समझाना भी खतरे से खाली नहीं था ।
अतः मैं यकायक कोई निर्णय न ले सका । मेरी बहन तुरन्त उठकर अपने घर चली गयीं ।
इसके बाद मैंने इस बात पर चिंतन करना शुरू किया कि बच्चे के मन में इस तरह के बिचार क्यों आये ?
मेरी बहन एक सरकारी जूनियर हाईस्कूल में { घर से एक तरफ़ से 35 किमी बस का सफ़र । फ़िर 4 किमी की लिफ़्ट या पैदल जाना }  शिक्षिका है । उसके पति कंपनी के कार्य से अकसर { एक सप्ताह में रात बे रात अधिक से अधिक 80 घन्टे का टाइम घर के लिये । वो भी सोते हुये या कंपनी रिलेटिड फ़ोन अटेंड करते हुये } आल इंडिया टूर पर ही रहते  हैं । एक बङी लङकी बाहर हास्टल में रहकर ITI की पढाई कर रही है । इस तरह घर में अधिकांश समय दस और बारह साल के ये दो बच्चे ही अकेले रह जाते हैं ।
और ये अकेलेपन की बात सिर्फ़ कुछ दिनों से ही नहीं है । जबसे बच्चों ने इस संसार में आँखे खोली है । उन्हें इसी स्थिति का सामना करना पङा है । और ये बात उनके तीनों ही बच्चों पर लागू होती है ।
इस घर में एक आम मध्यमवर्गीय सभी सुख सुविधायें मौजूद हैं । आर्थिक दृष्टि से भी बच्चों की सभी जरूरतों को बेहतर तरीके से पूरा किया जाता है । उन्हें किसी भी चीज का अभाव नहीं हैं ।
अभाव है । तो सिर्फ़ एक बात का । माता पिता के प्यार का । अपनों के स्नेह का । अपनों के बीच रहने का । जिसको न बाजार से खरीदा जा सकता है । और न हीं जिसके दूसरे विकल्प होते हैं ।
माँ सुबह ही स्कूल के लिये निकल जाती है । शाम को थकी हारी घर वापस आती हैं । संडे और अन्य छुट्टियों में भी आवश्यक कार्य बने ही रहते हैं । पिता की हालत इससे भी चार कदम आगे है ।
ऐसे में यह बच्चे कब तक अपने आपको संभालें । जबकि अकेलेपन की ऐसी स्थिति से गुजरते हुये जिन्दगी के अनुभवों से तपे हुये बुजुर्ग भी घबरा जाते हैं ।
वास्तव में इस बच्चे को मारना तो दूर { जैसा कि उसने रिकार्डिंग में कहा है } कोई उसको डाँटता भी नहीं है । पर जन्म से ही अकेलेपन को झेलते इस बच्चे की ऐसी भावना बन गयी कि उसे मम्मी पापा कोई भी प्यार नहीं करता । दीदी भी प्यार नहीं  करती आदि..।
 घटना के 5 दिन बाद । After 5 Day -
अभी भी ये लेख पूरा नहीं हुआ है - फ़िर से बाद में । अचानक व्यवधान आ गया ।








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सत्यसाहिब जी सहजसमाधि, राजयोग की प्रतिष्ठित संस्था सहज समाधि आश्रम बसेरा कालोनी, छटीकरा, वृन्दावन (उ. प्र) वाटस एप्प 82185 31326