06 अप्रैल 2010

ईश्वर, तुम्हारे स्वयं के भीतर ही है

संसार के 90%  मनुष्यों की दौड़ ईश्वर को पा लेना होती है । यह मनुष्य को जन्म से ही सिखाया जाता है कि मंदिर में भगवान है । उसको हाथ जोड़ो । उससे डरो । और तरह तरह के डर भर दिये जाते हैं । हम भी उनके बताये को मानने लगते हैं । और चल पड़ते हैं । और जहाँ जहाँ मंदिर मिलते हैं । वहाँ वहाँ चलते चलते हाथ जोड़कर या मुन्डी हिलाकर चल देते हैं । और समझ लेते हैं कि जिसको हमने हाथ जोड़े । या मुन्डी हिलाकर अभिवादन किया है । वह नाराज नही होंगे । और यदि नमन नहीं किया । तो वे नाराज हो जायेंगे । और जो जो भी हमे मिलता है । उसको भी बताने लगते हैं । फिर कुछ धार्मिक पुस्तकें बता दी जाती हैं कि इनको पढ़ें । इनको पढ़कर तुम ज्ञानी हो जाओगे । और फिर हम जिन्दगी भर उनसे जुझते रहते हैं । और स्वयं को ज्ञानी समझते रहते हैं । किन्तु हमने जितना भी जहाँ से भी पढा है । या सुना है । या बताये गये को माना है । सबका सब कचरा अपने अंदर भर लिया है । वह ज्ञान नहीं । अज्ञान ही इकट्ठा कर लिया है । और उसने हमारे भीतर अहंकार को जन्म दे दिया है । और उस ज्ञान के अहंकार ने हमे अंदर ही अंदर खोखला कर दिया है । और उस अज्ञान को हम और और ग्रहण करने में लगे रहते हैं । और जितने हमारे सानिध्य में आते हैं । उनको भी बताते रहते हैं । और दूसरी तरफ जब हमें कोई ज्ञानी सतगुरू मिल जाता है । तो वह सबसे पहले हमारा मंदिर जाना, पूजा करना, हमारा धार्मिक पुस्तकों को पढ़ना रोकता है । वह कहता है कि जो जो भी तुम धर्म के लिये या अध्यात्म के लिये अभी तक कर रहे थे । सब बंद कर दो । और स्वयं को जानना प्रारंभ कर दो । यह जान लो कि वास्तव में तुम हो क्या ? क्या तुम शरीर हो ? या कुछ और हो ? इसको जान लो । क्योंकि ईश्वर, तुम्हारे स्वयं के भीतर ही है । वह बाहर भी संपूर्ण ब्रह्माण्ड में है । किन्तु उसको जानना स्वयं के भीतर ही संभव है । क्योंकि अभी तक जो कर रहे थे । उनसे तुम्हारा काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार कम होने के स्थान पर और बढ़ता जाता है । जिसके कारण तुम शांत होने के स्थान पर और और अशांत व दुःखी होते जाते हो । और यदि तुम स्वयं के भीतर रूकने लगते हो । तो बाहर के सारे विचार रूपी वासना रूपी कचरा जब भीतर कम होता है । या भीतर जाना बंद होता है । तो तुम शांत होने लगते हो । और शांत होना ही सुखी होना है । धीरे धीरे निरंतर अभ्यास और योग्य गुरू के सतसंग से तुम में और शांति बढ़ती जाती है । और तुम पूर्णरूप से शांत हो जाते हो ।
नाद ब्रह्म ध्यान योग धाम आश्रम इन्दौर ।
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ये भजन मेरे एक मित्र ने सुनाया है जिसमें जीवात्मा को सचेत रहने की सलाह दी गयी है . ये भजन प्रत्येक के लिये उपयोगी हो सकता है यदि आप इसको समझने का प्रयत्न करें .
चौकी पे चौकीदार हो तुम चौकस रहियो भैया .
चौकी चार चार कर्मन की दफ़ा है न्यारी न्यारी . सम्मन कर तामील मुकद्दमा हो जायेगा जारी .
रहना लङने को तैयार हो . तुम चौकस रहियो भैया
जीत गये तो इस चौकी पर ड्यूटी रहे तुम्हारी . हार गये तो दफ़ा मुताबिक होवे जेल करारी .
बचना मुश्किल होय तुम्हार हो . तुम चौकस रहियो भैया
काम क्रोध मद लोभ मोह की छाय रही अंधियारी . गुरु ग्यान का दीप हाथ ले देखो नैन उघारी .
मौका मिले न बारम्बार हो . तुम चौकस रहियो भैया
पारख द्रष्टि दया सतगुरु की , कोई कोई पावे अधिकारी . अमोल भवजल बहुर ना आवे , कहे कबीर पुकारी .
संशय रूपी ये संसार हो ,तुम चौकस रहियो भैया
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मक्की के फायदे - ताजे दूधिया मक्का के दाने पीसकर शीशी में भरकर खुली हुई शीशी धूप में रखें । दूध सूखकर उड़ जाएगा । और तेल शीशी में रह जाएगा । छानकर तेल को शीशी में भर लें । और मालिश किया करें । दुर्बल बच्चों के पैरों पर मालिश करने से बच्चा जल्दी चलेगा । 1 चम्मच तेल शर्बत में मिलाकर पीने से बल बढ़ता है । भुट्टा जलाकर उसकी राख पीस लें । इसमें स्वादानुसार सेंधा नमक मिला लें । नित्य 4 बार चौथाई चम्मच गर्म पानी से फंकी लें । खांसी में लाभ होगा । ताजा मक्का के भुट्टे पानी में उबालकर उस पानी को छानकर मिश्री मिलाकर पीने से पेशाब की जलन गुर्दों की कमजोरी दूर हो जाती है । मक्का के भुट्टे जलाकर राख कर लें । जौ जलाकर राख कर लें । दोनों को अलग अलग पीसकर अलग अलग शीशियों में भरकर उन शीशियों पर नाम लिख दें । 1 कप पानी में 2 चम्मच मक्का की राख घोलें । फिर छानकर इस पानी को पी लें । इससे पथरी गलती है । पेशाब साफ आता है । जिसे टीबी का पूर्व रूप हो । उसे मक्का की रोटी खानी चाहिए । गरमागरम भुट्टे और उसके विविध व्यंजन खाने का 1 अलग ही मजा है । भुट्टा ग्रेमिनी कुल का 1 प्रसिद्ध धान्य है । आयुर्वेद के अनुसार कच्ची मक्का का भुट्टा तृप्तिदायक वातकारक कफ पित्त नाशक मधुर और रुचि उत्पादक अनाज है । भुट्टे में पौष्टिक तत्व कार्बोहाइड्रेट प्रचुर मात्रा में पाया जाता है । इसमें मुख्य रूप से प्रोटीन होता है । हालांकि इस प्रोटीन को अपूर्ण प्रोटीन माना गया है । 100 ग्राम भुट्टे के दानों से काफी कैलोरी ऊर्जा प्राप्त होती है । भुट्टे के 100 ग्राम दानों;  कच्ची मक्का में काफी पोषक तत्वों की मात्रा खनिज एवं विटामिन पाए जाते हैं ।
औषधीय गुण - मक्का के ताजे दानों को पानी में अच्छी तरह से उबालकर उस पानी को छानकर शहद या मिश्री मिलाकर सेवन करने से गुर्दों की कमजोरी दूर होती है ।
- मक्का के दाने भूनकर खाने से पाचन तंत्र के रोग दूर होते हैं ।
- भूना हुआ भुट्टा खाने से दांत एवं दाढ़ मजबूत होते हैं । तथा ये दाने लार बनाने में भी सहायक हैं । जिससे मुख व दांतों की दुर्गंध भी दूर होती है ।

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सत्यसाहिब जी सहजसमाधि, राजयोग की प्रतिष्ठित संस्था सहज समाधि आश्रम बसेरा कालोनी, छटीकरा, वृन्दावन (उ. प्र) वाटस एप्प 82185 31326